भारत में समाजशास्त्र की प्रारंमता का वर्णन एक विषय-क्षेत्र के रूप में कीजिए।

 

भारत में समाजशास्त्र की प्रारंमता का वर्णन एक विषय-क्षेत्र के रूप में कीजिए।

समाजशास्त्र मानव समाज का अध्ययन है। यह सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है, जो मानवीय सामाजिक संरचना और गतिविधियों से सम्बन्धित जानकारी को परिष्कृत करने और उनका विकास करने के लिएअनुभवजन्य विवेचन और विवेचनात्मक विश्लेषण[3] की विभिन्न पद्धतियों का उपयोग करता है, अक्सर जिसका ध्येय सामाजिक कल्याण के अनुसरण में ऐसे ज्ञान को लागू करना होता है। समाजशास्त्र की विषयवस्तु के विस्तार, आमने-सामने होने वाले सम्पर्क के सूक्ष्म स्तर से लेकर व्यापक तौर पर समाज के बृहद स्तर तक है।

समाजशास्त्र, पद्धति और विषय वस्तु, दोनों के मामले में एक विस्तृत विषय है। परम्परागत रूप से इसकी केन्द्रियता सामाजिक स्तर-विन्यास (या "वर्ग"), सामाजिक संबंधसामाजिक संपर्कधर्म, संस्कृति और विचलन पर रही है, तथा इसके दृष्टिकोण में गुणात्मक और मात्रात्मक शोध तकनीक, दोनों का समावेश है। चूँकि अधिकांशतः मनुष्य जो कुछ भी करता है वह सामाजिक संरचना या सामाजिक गतिविधि की श्रेणी के अर्न्तगत सटीक बैठता है, समाजशास्त्र ने अपना ध्यान धीरे-धीरे अन्य विषयों जैसेचिकित्सासैन्य और दंड संगठनजन-संपर्क और यहाँ तक कि वैज्ञानिक ज्ञान के निर्माण में सामाजिक गतिविधियों की भूमिका पर केन्द्रित किया है। सामाजिक वैज्ञानिक पद्धतियों की सीमा का भी व्यापक रूप से विस्तार हुआ है। 20वीं शताब्दी के मध्य के भाषाई और सांस्कृतिक परिवर्तनों ने तेज़ी से सामाज के अध्ययन में भाष्य विषयक और व्याख्यात्मक दृष्टिकोण को उत्पन्न किया। इसके विपरीत, हाल के दशकों ने नये गणितीय रूप से कठोर पद्धतियों का उदय देखा है, जैसे सामाजिक नेटवर्क विश्लेषण।

सामाजिक ज्ञान उतना ही प्राचीन है जितना कि मानवीय समाज | सृष्टि के प्रारंभ से ही मानव अपने सामाजिक जीवन के बारे में सोचता आया है और सोचता रहा है समूह के क्रियाकलापों में भाग लेने के लिए आवश्यक है कि आने वाली विभिन्न समस्याओं को सुलझाया जाए इन्हीं प्रयत्नों के परिणाम स्वरुप ही समाजशास्त्र की उत्पत्ति हुई है और इसका विकास अविराम गति से होता जा रहा है वास्तव में समाजशास्त्र का अतीत बहुत लंबा है परंतु इतिहास उतना ही छोटा है

एक पृथक विषय के रूप में समाजशास्त्र का इतिहास 200 वर्ष से कम पुराना है इस विषय के अंतर्गत समाज का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है पूर्व में समाज , सामाजिक संबंधों , परिवार , विवाह , सामाजिक संपत्ति , सामाजिक संस्थाओं आदि पर धर्म का प्रभाव स्पष्ट था ईसा के जन्म के पूर्व भारत , चीन , अरब , ग्रीस ,रोम आदि देशों में सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों पर दार्शनिक दृष्टिकोण से चिंतन प्रारंभ हुआ इस समय मनु , कौटिल्य , कन्फ्यूशियस , प्लेटो तथा अरस्तू प्रसिद्ध सामाजिक दार्शनिक हुए यद्यपि प्रारंभ में समाज और सामाजिक जीवन को धार्मिक एवं दार्शनिक आधार पर समझने का प्रयत्न किया गया लेकिन धर्म और दर्शन की पद्धतियों में वस्तुनिष्ठता का अभाव था , निरीक्षण एवं परीक्षण को कोई महत्व नहीं दिया गया था

तत्पश्चात इतिहास की सहायता से समाज और सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने का प्रयास किया गया समाजशास्त्र के अंतर्गत इतिहास की सहायता से बीते हुए युग के संबंध में जानकारी प्राप्त की गई अठारहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों एवं 19वीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों में इतिहास एवं दर्शन की अध्ययन विधियों का मिलाजुला रुख देखने को मिलता है इस प्रकार के विश्लेषण पद्धति के विकास में जर्मन दार्शनिक हीगल का विशेष योगदान था इससे समाजशास्त्र के विकास में काफी सहायता मिली इस समय यूरोप में सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक पक्षों के लिए राजनीतिक अर्थतंत्र नामक विषय को काफी महत्व दिया गया इस विषय से संबंधित अध्ययनों ने समाजशास्त्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया

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