FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा Solved Assignmnet Jan–Dec 2025

FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा Solved Assignmnet Jan–Dec 2025
FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा Solved Assignmnet Jan–Dec 2025

भाग कः वर्णनात्मक प्रश्न

1. ) समुदाय में पोषण और स्वास्थ्य समस्याओं का पता आप कैसे लगाएंगे?

समुदाय में पोषण और स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाने के लिए एक योजनाबद्ध, वैज्ञानिक और सहभागी पद्धति अपनानी चाहिए, जिससे हमें सटीक और उपयोगी जानकारी प्राप्त हो सके। यह प्रक्रिया कई चरणों में पूरी की जाती है, जिन्हें हम नीचे विस्तार से देखेंगे:

1. पूर्व तैयारी (Planning)

·         सर्वेक्षण क्षेत्र, आबादी और उद्देश्य स्पष्ट करना।

·         सर्वेक्षण का समय, साधन, प्रश्नावली और टीम का निर्धारण करना।

·         सामुदायिक नेताओं और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि से सहयोग प्राप्त करना।

2. जानकारी इकट्ठा करने की विधियाँ (Methods of Data Collection)

(i) साक्षात्कार (Interview):

·         परिवारों, माताओं, गर्भवती महिलाओं से प्रश्न पूछकर जानकारी लेना।

·         बच्चों के भोजन, स्तनपान की अवधि, खाने की आदतों के बारे में जानकारी पाना।

·         जैसे – "आपके बच्चे कितनी बार दूध पीते हैं?" या "घर में सप्ताह में कितनी बार दाल, फल या हरी सब्ज़ी बनती है?"

(ii) प्रत्यक्ष अवलोकन (Observation):

·         घर, रसोई, पानी के स्रोत, स्वच्छता की स्थिति का अवलोकन।

·         यह देखकर भी पता लगाया जा सकता है कि भोजन बनाने और खाने की प्रक्रिया में कौन-कौन सी गलतियाँ होती हैं, जैसेबार-बार हाथ धोना, खुले बर्तनों में खाना रखना आदि।

(iii) आहार सर्वेक्षण (Diet Survey):

·         परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा एक दिन या तीन दिन में खाए गए भोजन का विवरण लिखना।

·         इससे ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के सेवन का आकलन किया जाता है।

·         भोजन आवृत्ति प्रश्नावली (Food Frequency Questionnaire) से यह भी पता लगाया जा सकता है कि कौन से पोषक तत्व अक्सर कम लिए जाते हैं।

(iv) एंथ्रोपोमेट्रिक माप (Anthropometric Measurements):

·         बच्चों और वयस्कों का वजन, ऊँचाई, मध्यबाहु परिधि (Mid-Upper Arm Circumference) आदि मापना।

·         इससे कुपोषण (अल्पपोषण या अधिक पोषण) का आकलन होता है।

·         उदाहरण: पाँच साल से कम उम्र के बच्चों का वजन उनके आयु के अनुसार तुलना की जाती है।

(v) स्वास्थ्य रिकॉर्ड और अस्पताल के आँकड़े (Health Records & Hospital Data):

·         डिस्पेंसरी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से रोगों की संख्या और प्रकार की जानकारी प्राप्त करना।

·         जैसेदस्त, एनीमिया, टीबी, बुखार आदि कितने मामले सामने आए।

(vi) प्रयोगशाला जाँच (Lab Tests):

·         यदि संभव हो, तो रक्त जाँच से एनीमिया, विटामिन की कमी, या संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।

3. विश्लेषण और रिपोर्ट

·         एकत्रित आँकड़ों का विश्लेषण कर के यह समझा जाता है कि समुदाय में कौन सी पोषण और स्वास्थ्य समस्याएँ प्रमुख हैं, जैसे

o    बच्चों में कुपोषण

o    महिलाओं में एनीमिया

o    दूषित पानी के कारण दस्त

o    प्रोटीन की कमी

·         रिपोर्ट बनाकर पंचायत, आँगनवाड़ी और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ साझा की जाती है।

4. सुधार के लिए कार्ययोजना

·         सामूहिक चर्चा (FGD) और ग्राम सभा में परिणाम बताना।

·         पोषण शिक्षा कार्यक्रम, स्वास्थ्य शिविर, साफ-सफाई अभियान आदि का आयोजन करना

) समुदाय पोषण के तीन घटकों के नाम बताइए। किसी एक घटक को संक्षेप में बताइए।

समुदाय पोषण के तीन प्रमुख घटक हैं:

1.     पोषण शिक्षा (Nutrition Education)

2.     पूरक आहार कार्यक्रम (Supplementary Feeding Programmes)

3.     स्वास्थ्य एवं अन्य सहयोगी सेवाएँ (Health & Supporting Services)

पोषण शिक्षा (Nutrition Education) को संक्षेप में विवरण:

पोषण शिक्षा का उद्देश्य लोगों को सही भोजन के महत्व, खाद्य चयन, खाना बनाने की विधि और सफाई के बारे में शिक्षित करना है, ताकि वे स्वयं अपने स्वास्थ्य की रक्षा कर सकें।

महत्त्व:

·         केवल खाना देना ही पर्याप्त नहीं है, जब तक लोग यह समझें कि क्या, कितना और कैसे खाना चाहिए।

·         खाने की परंपराओं, मिथकों और गलत आदतों को बदलना।

प्रमुख विषय:

·         संतुलित आहार के अवयव (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज)

·         शिशु और बाल आहार (Breastfeeding और Complementary Feeding)

·         गर्भवती महिलाओं और किशोरियों का पोषण

·         साफसफाई और भोजन संरक्षण

·         मौसमी सब्ज़ियों और सस्ती स्थानीय खाद्य पदार्थों का प्रयोग

शिक्षण के तरीके:

·         पोस्टर, पम्फलेट, वीडियो और चित्रों के माध्यम से।

·         समूह चर्चा, रसोई प्रदर्शनी, रेसिपी डेमो आदि।

·         स्कूल, आँगनवाड़ी केंद्र, महिला मंडल और पंचायत में प्रशिक्षण।

परिणाम:

·         परिवार के सदस्य बेहतर भोजन का चुनाव करते हैं।

·         बच्चों में कुपोषण के मामले घटते हैं।

·         महिलाओं का स्वास्थ्य सुधरता है।


निष्कर्ष:

समुदाय में पोषण और स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान करने के लिए हमें सटीक, व्यावहारिक और सहभागी पद्धति अपनानी चाहिए। इसके साथ ही, पोषण शिक्षा जैसे घटक लोगों को सक्षम बनाते हैं कि वे स्वयं के और अपने परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा कर सकें। इस तरह हम कुपोषण और रोगों की रोकथाम में वास्तविक बदलाव ला सकते हैं। 🌱👨👩👧👦🍲

Q2 ) समुदाक स्वास्थ्य के चार निर्धारक क्या हैं? संक्षेप में समझाइए।

हमारे स्वास्थ्य पर सिर्फ चिकित्सीय सुविधाएँ ही असर नहीं डालतीं, बल्कि कई अन्य सामाजिक, पर्यावरणीय और व्यक्तिगत कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन्हें ही स्वास्थ्य के निर्धारक (Determinants of Health) कहा जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, स्वास्थ्य के मुख्यतः चार प्रमुख निर्धारक होते हैं:
1️
   पर्यावरणीय
2️
   आर्थिक और सामाजिक
3️
    व्यक्तिगत जीवनशैली और व्यवहार
4️
   चिकित्सीय एवं स्वास्थ्य सेवाएँ

इनका विस्तार से विवरण नीचे दिया जा रहा है:

1. पर्यावरणीय निर्धारक

पर्यावरण हमारे स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव डालता है। इसमें प्राकृतिक पर्यावरण (वायु, जल, मिट्टी, मौसम आदि) और मानव निर्मित पर्यावरण (घरों की बनावट, सड़कें, जल निकासी व्यवस्था आदि) शामिल हैं।

·         स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता: गंदे पानी के सेवन से दस्त, हैजा, टाइफाइड जैसी बीमारियाँ फैलती हैं।

·         स्वच्छता और मलमूत्र निस्तारण: खुले में शौच से मिट्टी, पानी और मक्खियों के जरिए रोग फैलते हैं।

·         वायु प्रदूषण: धुआँ, धूल, रसायनों के कारण अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी और हृदय रोगों का खतरा बढ़ता है।

·         आवास की स्थिति: संकरी, गंदी, बिना रोशनी और वेंटिलेशन के बस्तियों में संक्रामक रोग ज्यादा फैलते हैं।

अतः स्वच्छ पर्यावरण, अच्छे मकान, हरी-भरी जगहें और साफ पानी स्वस्थ जीवन के लिए अनिवार्य हैं।

2. आर्थिक और सामाजिक निर्धारक

व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति का उसके स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है।

·         आय और रोज़गार: जो लोग आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं, वे पोषक आहार, स्वच्छ पानी और स्वास्थ्य सेवाओं का उपयोग कम कर पाते हैं।

·         शिक्षा का स्तर: शिक्षित लोग पोषण, स्वच्छता, टीकाकरण जैसे विषयों के प्रति अधिक जागरूक रहते हैं।

·         परिवार और समुदाय का सहयोग: सामाजिक बंधन मानसिक स्वास्थ्य और कठिनाइयों से उबरने में मदद करते हैं।

·         लिंग भेदभाव: महिलाओं को कभी-कभी कम भोजन, कम इलाज मिलता है, जिससे उनकी सेहत प्रभावित होती है।

इसलिए गरीबी कम करना, शिक्षा बढ़ाना और सामाजिक समानता को बढ़ावा देना स्वस्थ समाज के लिए ज़रूरी है।

3. व्यक्तिगत जीवनशैली और व्यवहार

व्यक्ति के रोज़मर्रा के जीवन में किए गए चुनाव भी उसके स्वास्थ्य पर असर डालते हैं:

·         आहार की आदतें: संतुलित आहार, पर्याप्त पानी, समय पर खाना।

·         शारीरिक गतिविधि: नियमित व्यायाम से मोटापा, हृदय रोग, डायबिटीज़ आदि का खतरा कम होता है।

·         नशे की आदतें: तम्बाकू, शराब, ड्रग्स आदि से कैंसर, लीवर की बीमारी जैसी गंभीर समस्याएँ होती हैं।

·         नींद और मानसिक तनाव: पर्याप्त नींद और तनाव प्रबंधन भी ज़रूरी है।

सही जीवनशैली अपनाकर अनेक रोगों को रोका जा सकता है।

4. चिकित्सीय और स्वास्थ्य सेवाएँ

अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता भी महत्वपूर्ण है:

·         टीकाकरण कार्यक्रम: बच्चों को खतरनाक बीमारियों से बचाते हैं।

·         गर्भवती महिलाओं की देखभाल (ANC): माँ और बच्चे की मौत के खतरे को कम करता है।

·         सस्ता और सुलभ इलाज: रोग की जल्द पहचान और इलाज संभव बनाता है।

·         पोषण कार्यक्रम: जैसे मिड डे मील, ICDS आदि से कुपोषण में कमी आती है।

अतः स्वास्थ्य सेवाओं को सबकी पहुँच में लाना आवश्यक है।

 

निष्कर्ष

हमारा स्वास्थ्य केवल दवाओं या अस्पताल से नहीं सुधरता, बल्कि पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति, जीवनशैली और स्वास्थ्य सेवाएँये सब मिलकर सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। इन सभी को मजबूत कर ही स्वस्थ समुदाय बनाया जा सकता है।

) गर्भावस्था के दौरान पोषण सम्बन्धी संदेश जो आप महिलाओं को देगें उन्ही में किन्ही पाँच संदेशों को सूची बद्ध कीजिए।

गर्भावस्था में महिला के शरीर को शिशु के विकास और स्वयं की सेहत के लिए अधिक ऊर्जा, प्रोटीन, विटामिन और खनिज की आवश्यकता होती है। सही जानकारी और शिक्षा से गर्भवती महिला स्वस्थ रह सकती है और स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।

पाँच महत्वपूर्ण पोषण संदेश:

1️    पर्याप्त और विविध आहार लें:

·         हर दिन अनाज, दाल, दूध, हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, फल और थोड़ी मात्रा में तेलघी का सेवन करें।

·         भोजन में विभिन्न रंग और प्रकार के खाद्य पदार्थ शामिल करें, ताकि सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें।

उदाहरण: रोटी, चावल, दाल, दूध, पनीर, मौसमी फल, सब्ज़ियाँ और अंकुरित अनाज।

2️    अधिक आयरन और कैल्शियम युक्त भोजन खाएँ:

·         खून की कमी (एनीमिया) से बचने के लिए हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, गुड़, चना, सोयाबीन, खजूर आदि खाएँ।

·         कैल्शियम के लिए दूध, दही, पनीर, तिल और रागी का सेवन करें।

·         डॉक्टर द्वारा दी गई आयरन और कैल्शियम की गोलियाँ नियमित रूप से लें।

3️    पर्याप्त पानी और स्वच्छ भोजन का सेवन करें:

·         दिन में कम से कम 8–10 गिलास पानी पिएँ।

·         फलसब्ज़ियों को अच्छी तरह धोकर खाएँ।

·         घर का ताज़ा और साफ खाना ही खाएँ।

4️    नाश्ता कभी छोड़ें और बारबार थोड़ी मात्रा में खाएँ:

·         दिन में 4–5 बार हल्काहल्का भोजन लें।

·         सुबह का नाश्ता शरीर को ऊर्जा देता है, इसे कभी छोड़ें।

·         सुबह दूधफल, दोपहर में रोटीसब्ज़ी, शाम को हल्का नाश्ता और रात में हल्का भोजन।

5️     कैफीन, शराब और तम्बाकू से पूरी तरह दूर रहें:

·         चायकॉफी सीमित मात्रा में लें।

·         शराब, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, पान मसाला आदि का सेवन बिल्कुल करें, क्योंकि ये गर्भस्थ शिशु के लिए खतरनाक हैं।

निष्कर्ष

गर्भावस्था के दौरान सही पोषण केवल माँ को स्वस्थ रखता है, बल्कि जन्म लेने वाले शिशु की शारीरिक और मानसिक वृद्धि की नींव भी मजबूत करता है। समुदाय और परिवार को भी गर्भवती महिला का सहयोग करना चाहिए, ताकि वह संतुलित आहार ले सके और सुरक्षित प्रसव की दिशा में बढ़ सके।

Q3. ) बच्चों में एनीमिया की रोकथाम के लिए जनसंख्या समूहों को दिए गए तीन संदेश लिखिए।

एनीमिया (खून की कमी) बच्चों में बहुत आम पोषण समस्या है, जो उनके शारीरिक विकास, पढ़ाई और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इसको रोकने के लिए समुदाय को तीन सरल लेकिन प्रभावी संदेश दिए जा सकते हैं:

 

1️⃣    आयरन युक्त भोजन को रोज़ के आहार में शामिल करें

·         बच्चों को पालक, सरसों, बथुआ, चौलाई जैसी हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ, गुड़, चना, अंकुरित अनाज, तिल और दालें दें।

·         अंडा, मांस या लीवर (यदि परिवार शाकाहारी नहीं है) भी अच्छे स्रोत हैं।

उदाहरण: सप्ताह में कम से कम 4–5 बार हरी सब्ज़ियाँ दें और हर दिन दाल या चना ज़रूर दें।

2️⃣    खट्टे फलों या विटामिन सी युक्त खाद्य पदार्थों के साथ आयरन लें

·         विटामिन सी आयरन के अवशोषण को बढ़ाता है।

·         भोजन के साथ नींबू का रस, आंवला, संतरा या टमाटर सलाद दें।

उदाहरण: दालचावल या हरी सब्ज़ी के साथ नींबू का रस डालें या खाने के बाद संतरा खिलाएँ।

3️⃣    डॉक्टर द्वारा दी गई आयरन की गोली/सिरप नियमित दें

·         6 माह से ऊपर के बच्चों में अगर डॉक्टर ने आयरन की सिरप या गोली दी है, तो उसे नियमित देना ज़रूरी है।

·         बिना परामर्श के खुद से दवा दें, पर डॉक्टर के निर्देश पर पूरा कोर्स कराएँ।

उदाहरण: आयरन सिरप हर रोज़ निश्चित मात्रा में दें, बीच में बंद करें।

यदि समुदाय को यह समझाया जाए कि संतुलित आहार, विटामिन सी का साथ और नियमित आयरन सप्लीमेंट बच्चों में एनीमिया से बचाव के आसान तरीके हैंतो एनीमिया के मामले काफी घटाए जा सकते हैं।

 

) किसी समुदाय में संदेश की प्रासंगिकता और प्रभावशीलता में सुधार हेतु किये जाने वाले कार्यों की सूची बनाएं।

किसी भी स्वास्थ्य या पोषण संदेश को प्रभावी और व्यवहार में उतारने योग्य बनाने के लिए कुछ योजनाबद्ध प्रयास करना ज़रूरी है। नीचे ऐसे प्रमुख कार्यों की सूची दी गई है:

1️⃣    स्थानीय भाषा और संस्कृति के अनुसार संदेश तैयार करना

·         स्थानीय बोली, कहावतें या लोक गीत का प्रयोग करें।

·         उदाहरण: स्लोगन या गीत मेंखून बढ़ेगा हराभरा खाना खाने सेजैसे शब्द प्रयोग करें।

2️⃣ दृश्य सामग्री और चित्रों का उपयोग करना

·         पोस्टर, चार्ट, चित्र और वीडियो से बात समझाना आसान होता है, विशेषकर अशिक्षित लोगों में।

·         रंग-बिरंगे पोस्टर बच्चों को भी आकर्षित करते हैं।

3️⃣ समूह चर्चा और संवाद करना

·         सिर्फ एकतरफा भाषण देकर, प्रश्नउत्तर सत्र रखें।

·         समूह में बैठकर महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों से चर्चा करें, ताकि वे अपनी शंकाएँ पूछ सकें।

4️⃣ रसोई प्रदर्शन (Cooking Demonstration) करना

·         हरी सब्ज़ियों की स्वादिष्ट रेसिपी, अंकुरित अनाज की चाट जैसी आसान विधियाँ现场 दिखाएँ।

·         इससे लोग सीखकर तुरंत अमल कर सकते हैं।

5️⃣ स्कूल और आँगनवाड़ी को शामिल करना

·         बच्चों को स्कूल और आँगनवाड़ी में खेलखेल में बताना।

·         अध्यापक और आँगनवाड़ी कार्यकर्ता को भी प्रशिक्षित करना।

6️⃣ समुदाय के प्रभावशाली व्यक्तियों की भागीदारी

·         पंचायत, आशा कार्यकर्ता, गाँव के बुजुर्ग या धार्मिक नेता के ज़रिए संदेश पहुँचाना।

·         लोग उन्हें विश्वसनीय मानते हैं, इसलिए असर ज़्यादा होता है।

7️⃣ सरल और व्यावहारिक सुझाव देना

·         जटिल वैज्ञानिक शब्दों की बजाय छोटेछोटे, रोज़मर्रा के उपयोगी सुझाव।

·         जैसे – “हरी पत्तेदार सब्ज़ी रोज़ खाओ”, “दालचावल में नींबू डालो

8️⃣ स्थानीय खाद्य पदार्थों पर ज़ोर देना

·         वही खाद्य वस्तुएँ बताना जो सस्ती, आसानी से उपलब्ध और मौसम के अनुसार हों।

·         जैसेसरसों, पालक, मूँग, चना, तिल आदि।

9️⃣    नियमित निगरानी और फीडबैक

·         संदेश का असर देखने के लिए समयसमय पर सर्वेक्षण करें।

·         लोगों से पूछें कि क्या उन्होंने बताया हुआ उपाय आज़माया? क्या फर्क पड़ा?

🔟 प्रोत्साहन और पुरस्कार देना

·         जो परिवार बदलाव करते हैं, उनकी सार्वजनिक प्रशंसा या छोटा पुरस्कार देना।

·         इससे औरों को भी प्रोत्साहन मिलता है।

सिर्फ संदेश देना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सरल, रोचक, स्थानीय और संवादात्मक तरीके से समझाना और व्यवहार में बदलने की कोशिश करना ज़रूरी है। तभी वह प्रभावी और प्रासंगिक होगा।

4. ) उदाहरण सहित समूह संचार विधियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिए।

समूह संचार (Group Communication) का अर्थ होता हैएक साथ कई व्यक्तियों को एक ही स्थान पर बैठाकर जानकारी, विचार, दृष्टिकोण या व्यवहार साझा करना।
यह तो व्यक्तिगत संचार की तरह केवल दो व्यक्तियों के बीच होता है, ही जनसंचार की तरह अनगिनत लोगों तक रेडियो, टीवी से पहुँचता है; बल्कि इसमें एक सीमित समूह होता है, जिससे सीधा संवाद भी संभव होता है।

समूह संचार विधियों को मुख्यतः दो प्रमुख वर्गों में बाँटा जा सकता है:
1️
    मौखिक / वाचिक (Oral)
2️
    दृश्य / श्रव्य-दृश्य (Visual / Audio-Visual)

नीचे उदाहरणों के साथ इनके बारे में विस्तार से जानते हैं:

1. मौखिक / वाचिक समूह संचार विधियाँ

📌 (i) व्याख्यान (Lecture)

·         यह सबसे सामान्य और पारंपरिक विधि है।

·         इसमें वक्ता सीधे समूह को किसी विषय पर समझाता है।

·         उदाहरण: किसी गाँव में आशा कार्यकर्ता द्वारा एनीमिया की जानकारी देना।

📌 (ii) समूह चर्चा (Group Discussion)

·         इसमें समूह के सभी सदस्य सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

·         विषय पर राय, अनुभव, समस्या और समाधान साझा होते हैं।

·         उदाहरण: किशोरियों के समूह में पोषण पर चर्चा।

📌 (iii) विचार गोष्ठी (Seminar) और कार्यशाला (Workshop)

·         विशेषज्ञों और प्रतिभागियों के बीच संवाद।

·         कार्यशाला में साथ में कुछ व्यावहारिक कार्य भी कराए जाते हैं।

·         उदाहरण: स्वास्थ्य कर्मियों के लिए स्तनपान पर कार्यशाला।

📌 (iv) रोल प्ले (Role Play)

·         प्रतिभागी किसी समस्या या विषय को अभिनय के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

·         उदाहरण: गाँव में हाथ धोने के महत्व पर नाटक करना।

✅ 2. दृश्य / श्रव्य-दृश्य समूह संचार विधियाँ

📌 (i) फ्लिप चार्ट, पोस्टर और चित्र

·         आसान भाषा और चित्रों से सन्देश प्रभावी ढंग से समझाए जाते हैं।

·         उदाहरण: स्कूल में टीकाकरण पर पोस्टर दिखाकर चर्चा करना।

📌 (ii) फिल्म और वीडियो प्रदर्शन

·         डॉक्यूमेंट्री, एनिमेशन या फिल्में समूह को दिखाई जाती हैं।

·         उदाहरण: बाल विवाह के दुष्परिणाम पर शॉर्ट फिल्म दिखाना।

📌 (iii) पपेट शो (Puppet Show)

·         कठपुतली के माध्यम से मनोरंजक और शिक्षाप्रद संदेश देना।

·         उदाहरण: साफसफाई और दस्त पर कठपुतली कार्यक्रम।

📌 (iv) फोक मीडिया (लोक कला)

·         गीत, लोक नाटक, कहानी, भजन आदि।

·         उदाहरण: महिला मंडली द्वारा गीतों में पोषण सन्देश देना।

निष्कर्ष:

समूह संचार विधियों में संवाद, भागीदारी और सीखने का अवसर ज़्यादा होता है। इनके माध्यम से सामाजिक व्यवहार परिवर्तन भी अपेक्षाकृत आसान होता है, क्योंकि लोग एक-दूसरे से सीखते हैं और सवाल भी पूछ सकते हैं।

) जनसंचार के लिए उपलब्ध विभिन्न मुद्रित माध्यमों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।

जनसंचार (Mass Communication) वह प्रक्रिया है, जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोगों तक एक साथ सूचना पहुँचाई जाती है। इसमें मुद्रित माध्यमों (Printed Media) की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि ये सस्ते, लंबे समय तक उपयोगी और आसानी से संग्रह किए जा सकते हैं।

नीचे प्रमुख मुद्रित माध्यमों की चर्चा की गई है:

✅ 1️⃣    अख़बार (Newspapers)

·         सबसे लोकप्रिय मुद्रित माध्यम।

·         ताज़ा समाचार, स्वास्थ्य कॉलम, कृषि, शिक्षा और अन्य विषयों पर लेख प्रकाशित होते हैं।

·         उदाहरण: ‘दैनिक जागरणमें स्वास्थ्य पर विशेष पृष्ठ।

विशेषता: सस्ता, बड़े क्षेत्र में पहुँच, पढ़ने वालों के लिए भरोसेमंद स्रोत।

✅ 2️⃣ पत्रिकाएँ

·         साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक रूप में निकलती हैं।

·         विशेष समूह या विषय केंद्रित हो सकती हैं जैसेमहिलाओं की पत्रिका, बच्चों की पत्रिका या स्वास्थ्य पत्रिका।

·         उदाहरण: ‘आहारा’, ‘किशोर वाणी

विशेषता: चित्रों और कहानियों के माध्यम से विषय को रोचक और विस्तार से समझाती हैं।

✅ 3️⃣    पुस्तिकाएँ और पुस्तके

·         किसी विशेष विषय पर संक्षिप्त या विस्तारपूर्वक सामग्री।

·         उदाहरण: ‘मातृ एवं शिशु स्वास्थ्यपर पुस्तिका।

विशेषता: लम्बे समय तक उपयोग की जा सकती हैं; बार-बार पढ़ने से समझ बेहतर होती है।

✅ 4️⃣ पेम्फलेट और लीफलेट

·         एक या दो पन्नों में मुख्य संदेश।

·         जैसेदस्त से बचाव, स्तनपान के लाभ, टीकाकरण की जानकारी आदि।

विशेषता: वितरण आसान, कम लागत, तुरन्त संदेश पहुँचाते हैं।

 

✅ 5️⃣ पोस्टर (Posters)

·         बड़े आकार के कागज पर चित्र और थोड़े शब्दों में संदेश।

·         जैसे – “खाना खाने से पहले हाथ धोएँ

विशेषता: पढ़े-लिखे और अनपढ़ दोनों के लिए प्रभावी; सार्वजनिक स्थानों पर लगाने से कई लोग देख सकते हैं।

✅ 6️⃣ चार्ट और फ्लिप चार्ट

·         प्रशिक्षण और शिक्षा सत्र में उपयोग।

·         विषय को क्रमबद्ध चित्रों में दिखाते हैं।

विशेषता: समूह संचार में भी उपयोगी; समझने में सरल।

निष्कर्ष :

मुद्रित माध्यम स्थायी, सस्ते और बार-बार पढ़े जा सकने वाले संसाधन होते हैं। चाहे अख़बार हो, पोस्टर हो या पुस्तिकाइनसे स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, पोषण जैसे विषयों पर जनसामान्य में जागरूकता फैलाना सरल और सशक्त बनता है।

5. ) शिक्षा संचार के संदर्भ में टेलीविजन का प्रयोग करने के लाभ और परिसीमाएँ की गणना कीजिए।

टेलीविजन आज के युग में शिक्षा संचार (Educational Communication) का एक प्रभावी माध्यम है, जो ज्ञान के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विशेषकर दूरदराज़ के ग्रामीण क्षेत्रों और अशिक्षित लोगों तक भी टेलीविजन के माध्यम से संदेश सरलता से पहुँचाए जा सकते हैं।

टेलीविजन के लाभ:

1️    दृष्टि और श्रव्य माध्यम (Audio-Visual Medium):

·         टेलीविजन आँखों और कानोंदोनों के ज़रिए सीखने का अवसर देता है।

·         चित्र, ध्वनि, रंग और गति के कारण विषय को समझना सरल और रोचक हो जाता है।

2️    दूरदराज़ क्षेत्र तक पहुँच:

·         बिजली और सिग्नल की सुविधा होने पर गाँवगाँव तक शैक्षिक संदेश पहुँचाया जा सकता है।

·         जिन क्षेत्रों में स्कूल, शिक्षक या पुस्तकें सीमित हैं, वहाँ टेलीविजन से शिक्षा दी जा सकती है।

3️    बड़े समूहों को एक साथ शिक्षा देना:

·         सामुदायिक केंद्र, स्कूल या गाँव के चौपाल में सभी लोग एक साथ टीवी देखकर सीख सकते हैं।

·         इससे संदेश का प्रभाव बढ़ता है और चर्चा की संभावना भी रहती है।

4️    कठिन विषयों को सरल बनाना:

·         जटिल अवधारणाओं को चित्र, एनिमेशन, मॉडल और उदाहरणों से दिखाया जा सकता है।

·         जैसेशरीर की रचना, पौधों की वृद्धि, खाद्य पिरामिड आदि को आसानी से समझाया जा सकता है।

5️    मनोरंजन के साथ शिक्षा (Edutainment):

·         गीत, नाटक, रोल प्ले, कहानी या कार्टून के माध्यम से भी शिक्षा दी जा सकती है।

·         बच्चों और वयस्कोंदोनों के लिए रुचिकर बनता है।

6️    समय और स्थान की बाधा कम:

·         एक ही कार्यक्रम देश के लाखों दर्शकों को एक साथ दिखाया जा सकता है।

·         रिकॉर्डेड कार्यक्रमों को बारबार दिखाया जा सकता है।

टेलीविजन की परिसीमाएँ (सीमाएँ या कमियाँ):

⚠️ 1️    दोतरफ़ा संवाद की कमी:

·         टेलीविजन में दर्शक केवल देख और सुन सकते हैं, तुरंत प्रश्न नहीं पूछ सकते।

·         यह एकतरफ़ा संचार (One-way communication) है।

⚠️ 2️    तकनीकी निर्भरता:

·         बिजली, सिग्नल, टीवी सेट की उपलब्धता पर निर्भर है।

·         ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की कमी बड़ी बाधा बन सकती है।

⚠️ 3️   भाषा और सन्दर्भ की बाधा:

·         यदि कार्यक्रम क्षेत्रीय भाषा में नहीं है या स्थानीय सन्दर्भ से नहीं जुड़ा है, तो प्रभाव कम हो सकता है।

⚠️ 4️   ध्यान की अवधि सीमित:

·         दर्शक लंबे समय तक एक ही विषय पर ध्यान नहीं दे पाते।

·         मनोरंजक कार्यक्रम के मुकाबले शैक्षिक कार्यक्रम कम आकर्षक हो सकते हैं।

 

⚠️ 5️    महंगा निर्माण खर्च:

·         गुणवत्तापूर्ण शैक्षिक कार्यक्रम बनाना समय और धन दोनों की दृष्टि से महँगा पड़ता है।

निष्कर्ष

टेलीविजन शिक्षा संचार का सशक्त माध्यम है, विशेषकर जब दृश्यश्रव्य सामग्री की आवश्यकता हो। लेकिन इसकी प्रभावशीलता तभी बढ़ती है जब कार्यक्रम स्थानीय भाषा, सन्दर्भ और दर्शकों की रुचि के अनुसार बनाए जाएँ और अन्य शिक्षण विधियों के साथ मिलकर इस्तेमाल किए जाएँ।

) पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा में प्रयोग करने के लिए किन्हीं तीन शिक्षण सहायक सामग्रियों की सूची बनाइए। किसी एक को संक्षेप में समझाइए।

शिक्षण सहायक सामग्रियाँ (Teaching Aids) वे साधन हैं, जिनका उपयोग विषय को अधिक स्पष्ट, रोचक और प्रभावी ढंग से समझाने के लिए किया जाता है। ये विशेषकर समुदाय में अशिक्षित या कम पढ़ेलिखे लोगों को समझाने में मदद करती हैं।

तीन प्रमुख शिक्षण सहायक सामग्रियाँ:

1️    पोस्टर (Posters)
2️
    फ्लिप चार्ट (Flip Chart)
3️
    मॉडल (Models)

फ्लिप चार्ट (Flip Chart) को संक्षेप में समझाइए:

फ्लिप चार्ट चित्रों या संदेशों की श्रृंखला होती है, जो कार्डबोर्ड या मोटे काग़ज़ पर बने होते हैं और क्रम से पलटे जाते हैं। इसे स्टैंड पर रखा जाता है और प्रस्तुतकर्ता एकएक करके पन्ने पलटकर समूह को दिखाता है।

 

विशेषताएँ और उपयोग:

·         एक विषय को चरणबद्ध ढंग से दिखाने के लिए उत्तम साधन।

·         चित्र, सरल शब्द और रंगों का प्रयोग करके संदेश को स्पष्ट करते हैं।

·         ग्रामीण समुदाय, महिला समूह या स्कूल के बच्चों के लिए उपयोगी।

·         जैसेपोषण शिक्षा मेंसंतुलित आहार के 5 प्रमुख समूहको क्रम से दिखाना।

·         आसान भाषा और बड़े चित्रों से अनपढ़ लोगों के लिए भी प्रभावी।

फायदे:

·         सस्ता, हल्का और कहीं भी ले जा सकते हैं।

·         बारबार इस्तेमाल किया जा सकता है।

·         दोतरफ़ा संवाद को बढ़ावा देता है; दर्शक प्रश्न भी पूछ सकते हैं।

निष्कर्ष :
पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा में पोस्टर, फ्लिप चार्ट और मॉडल जैसी शिक्षण सामग्रियाँ विषय को जीवंत, रोचक और सरल बनाती हैं। इनसे समुदाय में जागरूकता फैलाना और व्यवहार में बदलाव लाना अधिक संभव होता है।

6. ) संचार के लिए प्रयुक्त होने वाले किन्हीं तीन मशीन चालित उपकरणों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

संचार को प्रभावी, व्यापक और रोचक बनाने के लिए परंपरागत मौखिक साधनों के साथ-साथ आजकल मशीन चालित उपकरणों (Mechanical / Electronic Aids) का प्रयोग भी किया जाता है। ये उपकरण सूचना को तेज़ी से, दूर-दराज़ तक और बहुसंवेदी तरीके (देखकर, सुनकर) पहुँचाते हैं।
नीचे ऐसे तीन प्रमुख उपकरणों का विवरण दिया जा रहा है:

1️    प्रोजेक्टर (Projector):

परिभाषा:
प्रोजेक्टर वह मशीन है जो स्लाइड, फिल्म या डिजिटल छवियों को बड़े परदे पर प्रक्षेपित करता है, ताकि बड़ी संख्या में लोग एक साथ देख सकें।

उपयोग:

·         स्कूल, कॉलेज, प्रशिक्षण कार्यशालाओं और सामुदायिक शिक्षा में।

·         चार्ट, फोटो, आकृतियाँ या वीडियो को बड़े समूह को दिखाने में।

·         विशेषकर जब विस्तृत जानकारी या चरणबद्ध चित्रों को दिखाना हो।

लाभ:

·         विषय को बड़ा और स्पष्ट दिखाता है।

·         श्रव्य-दृश्य माध्यम से रुचिकर बनाता है।

·         बड़े समूह में समान संदेश पहुँचाता है।

उदाहरण:
गर्भवती महिलाओं को संतुलित आहार, स्तनपान और टीकाकरण के बारे में स्लाइड शो दिखाना।

✅ 2️⃣ टेलीविजन (Television):

परिभाषा:
दृष्टि और ध्वनि के मेल से संदेश या कार्यक्रम प्रसारित करने वाली मशीन।

उपयोग:

·         शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, पोषण जैसे विषयों पर विशेष कार्यक्रम।

·         दूरदराज़ क्षेत्रों में भी ज्ञान पहुँचाने के लिए।

·         सरकारी योजनाओं की जानकारी, पोषण शिक्षा के संदेश देने में।

लाभ:

·         ऑडियोविज़ुअल माध्यम से आकर्षक।

·         एक समय में लाखों लोगों तक संदेश।

·         मनोरंजन और शिक्षा का मिश्रण (Edutainment)

उदाहरण:
टीवी कार्यक्रमसुपोषणयामिलनजिसमें स्तनपान, कुपोषण और स्वच्छता पर संदेश दिए जाते हैं।

3️    रेडियो:

परिभाषा:
ध्वनि तरंगों द्वारा संदेशों और कार्यक्रमों को प्रसारित करने वाला यंत्र।

उपयोग:

·         विशेषकर अशिक्षित लोगों और ग्रामीण क्षेत्रों में।

·         कृषि, स्वास्थ्य, टीकाकरण, परिवार नियोजन, पोषण पर कार्यक्रम।

·         स्थानीय भाषा में संदेश प्रसारण।

लाभ:

·         सस्ता, सरल और बिजली होने पर भी बैटरी से चलता है।

·         व्यापक पहुँच, ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय।

·         सुनते-सुनते कार्य भी कर सकते हैं।

उदाहरण:
स्वास्थ्य भारतीकार्यक्रम जिसमें गर्भवती महिलाओं और माताओं को संतुलित आहार के महत्व पर बताया जाता है।

प्रोजेक्टर, टेलीविजन और रेडियो जैसे मशीन चालित उपकरण शिक्षा को रोचक, सजीव और प्रभावी बनाते हैं। इनसे संदेश तेज़ी से और बड़े समूह तक पहुँचाया जा सकता है, जो परंपरागत मौखिक तरीकों से संभव नहीं।

) पोषण शिक्षा के लिए परंपरागत उपागमें क्यों ज्यादा प्रभावी होती है? उपयुक्त उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

परंपरागत उपागम (Traditional Approaches) का मतलब वे तरीक़े हैं जो लंबे समय से समुदाय में प्रचलित हैं, जैसेलोकगीत, नाटक, कठपुतली शो, कहानी सुनाना, लोक कला आदि।
पोषण शिक्षा में ये आज भी प्रभावी माने जाते हैं, क्योंकि ये सीधे समुदाय की भाषा, संस्कृति और भावनाओं से जुड़ते हैं।

परंपरागत उपागम की विशेषताएँ:

📌 1️    स्थानीय भाषा और शैली में संदेश:

·         ग्रामीण या अशिक्षित समुदाय अपनी बोली में कही गई बात को ज़्यादा अच्छे से समझते और याद रखते हैं।

·         उदाहरण: भोजपुरी, अवधी या राजस्थानी में गीत या कहानी कहना।

📌 2️    सांस्कृतिक जुड़ाव:

·         लोककला, गीत, भजन, नाटक पहले से ही उनकी संस्कृति का हिस्सा होते हैं।

·         इससे संदेश पर विश्वास और अपनत्व बढ़ता है।

📌 3️    दोतरफ़ा संवाद की सुविधा:

·         नाटक, कठपुतली शो के बाद दर्शक सवाल कर सकते हैं।

·         प्रशिक्षक तुरंत उत्तर देकर भ्रांतियों को दूर कर सकता है।

📌 4️    कम लागत और सरलता:

·         मशीन, बिजली या महंगे साधनों की ज़रूरत नहीं।

·         गाँव में ही कुछ लोगों को प्रशिक्षित कर उपयोग कर सकते हैं।

📌 5️    मनोरंजन के साथ शिक्षा (Edutainment):

·         लोग सीखते भी हैं और उनका मनोरंजन भी होता है।

·         इससे संदेश लंबे समय तक याद रहता है।

उदाहरण से स्पष्ट:

उदाहरणकठपुतली शो द्वारा पोषण शिक्षा:

·         गाँव की महिलाओं और बच्चों को कठपुतली शो के ज़रिए यह बताया गया कि

o    बच्चों को 6 माह तक केवल माँ का दूध देना चाहिए।

o    6 माह बाद अर्धठोस आहार कैसे देना चाहिए।

·         गीत, संवाद और हास्य के माध्यम से बातें याद रह जाती हैं।

·         अंत में सवालजवाब से शंकाएँ भी दूर की जाती हैं।

दूसरा उदाहरणलोकगीत:

·         त्योहार या मेले में महिला मंडली ने गीत गाया:

o    हरीभरी सब्ज़ी खाएँ, खून बढ़ाएँ, रोग भगाएँ

·         यह सरल भाषा और तुकबंदी के कारण जल्दी याद हो गया।

·         महिलाएँ घर जाकर भी यह गीत गुनगुनाती हैं, जिससे परिवार के अन्य लोग भी सीखते हैं।

 

क्यों प्रभावी हैं:

·         स्थानीय सन्दर्भ और उदाहरण से जुड़ाव।

·         अनपढ़ व्यक्ति भी समझ पाता है।

·         समुदाय खुद भी इन्हें आगे बढ़ा सकता है।

·         भावनात्मक और सांस्कृतिक अपील के कारण गहरा असर।

पोषण शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि व्यवहार परिवर्तन करना है। परंपरागत उपागम, जैसे लोकनाट्य, गीत, पपेट शो आदि, समुदाय की भाषा और संस्कृति से जुड़े होने के कारण ज़्यादा प्रभावी होते हैं।
ये लोगों के दिल तक पहुँचते हैं और लंबे समय तक असर छोड़ते हैं, जिससे सही पोषण व्यवहार को अपनाना आसान हो जाता है।

7.) लोक उपागम की गाथाशैली क्या है? एक उदाहरण दीजिए।

) पोषण और स्वास्थ्य शिक्षण में उपयोग होने वाले विभिन्न आधुनिक उपागमों को सूचीबद्ध करें। उपयुक्त उदाहरण देते हुए किसी एक को समझाइए।

8. ) संवाद उपागम के संरचित और असंरचित प्रकार के बीच अन्तर बताइए।

) पोषण शिक्षा और समुदाय के लिए चाइल्ड-टू-चाइल्ड कार्य नीति में निहित सिद्धांतों का वर्णन कीजिए।

9. ) "समुदय सहभागित को बढावा देना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए

) आईसीडीएस के उद्देश्य और अनिवार्य विशेषताएं क्या हैं?

10. ) उन चरणों की सूची बनाएं जिन्हें आप एक समुदाय में पोषण शिक्षा कार्यक्रम के आयोजन तथा क्रियान्वयन करने में अपनाएंगे।

) पोषण और स्वास्थ्य कार्यक्रम आयोजित करने में अपनाए जा सकने वाले चार प्रक्रिया मॉडलों को सूचीबुद्ध कीजिए। किसी एक को संक्षेप में समझाइए।

खंड - प्रयोगात्मक क्रियाकलाप

1. नीचे दिए गए निम्नलिखित विषयों में से किसी एक के लिए एक पोस्टर तैयार करें (दिशानिर्देशों के लिए डी.एन.एच. -3, भाग-1, इकाई-10 देखें):

) स्तनपान के लाभ

) मलेरिया की रोकथाम

) मधुमेह

Q2. () किन्हीं दो विषयों को सोचे और लिखें जिन पर आप समुदाय को शिक्षित करने के लिए महिला-से-महिला कार्यनीति का उपयोग कर सकते हैं। (डीएनएचई-3. भाग-2, इकाई-16 देखें)

) ऊपर चुने गये विषयों में से किसी एक पर अपने समुदाय की महिलाओं को शिक्षित करें और उनके विचारों को रिकॉर्ड करें।

3. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक पर स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए निर्देशों के साथ एक बोर्ड गेम विकसित करें (डीएनएचई-3. भाग-2. इकाई 14 देखें):

) पृथ्वी बचाओ

) संतुलित आहार

Q4. वृद्धावस्था में पीईएम और / या पोषणात्मक समस्याओं से संबंधित एक छोटी व्याख्यान' स्क्रिप्ट तैयार करें। उत्तर पुस्तिका में स्क्रिप्ट संलग्न करें (डीएनएचई-3, भाग-1, इकाई 4 और 9 देखें)

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FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

We provide handwritten PDF and Hardcopy to our IGNOU and other university students. There are several types of handwritten assignment we provide all Over India. We are genuinely work in this field for so many time. You can get your assignment done - 8130208920

Important Note - You may be aware that you need to submit your assignments before you can appear for the Term End Exams. Please remember to keep a copy of your completed assignment, just in case the one you submitted is lost in transit.

Submission Date :

·        30 April 2025 (if enrolled in the July 2025 Session)

·       30th Sept, 2025 (if enrolled in the January 2025 session).

IGNOU Instructions for the DNHE 002 सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता Assignments

FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

Before attempting the assignment, please read the following instructions carefully.

1. Read the detailed instructions about the assignment given in the Handbook and Programme Guide.

2. Write your enrolment number, name, full address and date on the top right corner of the first page of your response sheet(s).

3. Write the course title, assignment number and the name of the study centre you are attached to in the centre of the first page of your response sheet(s).

4Use only foolscap size paper for your response and tag all the pages carefully

5. Write the relevant question number with each answer.

6. You should write in your own handwriting.

GUIDELINES FOR IGNOU Assignments 2024-25

FREE IGNOU DNHE-03 पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

You will find it useful to keep the following points in mind:

1. Planning: Read the questions carefully. Go through the units on which they are based. Make some points regarding each question and then rearrange these in a logical order. And please write the answers in your own words. Do not reproduce passages from the units.

2. Organisation: Be a little more selective and analytic before drawing up a rough outline of your answer. In an essay-type question, give adequate attention to your introduction and conclusion. The introduction must offer your brief interpretation of the question and how you propose to develop it. The conclusion must summarise your response to the question. In the course of your answer, you may like to make references to other texts or critics as this will add some depth to your analysis.

3. Presentation: Once you are satisfied with your answers, you can write down the final version for submission, writing each answer neatly and underlining the points you wish to emphasize.

IGNOU Assignment Front Page

The top of the first page of your response sheet should look like this: Get IGNOU Assignment Front page through. And Attach on front page of your assignment. Students need to compulsory attach the front page in at the beginning of their handwritten assignment.

ENROLMENT NO: …………………………

NAME: …………………………………………

ADDRESS: ………………………………………

COURSE TITLE: ………………………………

ASSIGNMENT NO: …………………………

STUDY CENTRE: ……………………………

DATE: ……………………………………………

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