MJY-002 सिद्धान्त ज्योतिष एवं काल NOTES :
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Historicity of Indian Astrology course under Indira Gandhi National Open
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Designed to simplify complex concepts, this book aligns with the official
syllabus to cover foundational topics like Vedic astrology, Jyotish
Shastra, and the historical evolution of Indian astrological practices.
MJY-002 सिद्धान्त ज्योतिष एवं काल NOTES : IGNOU HELP BOOK with Previous
Years
Chapter-wise Notes in Hindi
CHAPTER -1: सिद्धांत स्कंध
सिद्धांत
ज्योतिष का परिचय
सिद्धांत ज्योतिष भारतीय खगोल विज्ञान और गणित का प्राचीन ग्रंथों पर आधारित शाखा है। यह वैदिक काल से विकसित हुआ और आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कराचार्य जैसे विद्वानों ने इसे समृद्ध किया। सिद्धांतों (ग्रंथों) में खगोलीय घटनाओं की गणना के नियम, ग्रहों की गति, कालमान, और भूगोल संबंधी सिद्धांत दिए गए हैं। इनका उद्देश्य यज्ञों, त्योहारों, और जीवनचक्र के शुभ मुहूर्तों का निर्धारण करना था।
गोलज्ञान
गोलज्ञान खगोलीय गोलों (celestial spheres) का अध्ययन है। प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार, पृथ्वी और आकाशीय पिंड गोलाकार हैं। भचक्र (राशिचक्र) और खगोलीय भूमध्य रेखा (नाड़ीवृत्त) की अवधारणा यहाँ प्रमुख है। ग्रहों की गति को समझने के लिए ग्रहमंडल (कक्षाएँ) और परिधि (कक्षीय पथ) का ज्ञान आवश्यक है।
भूगोल
का स्वरूप
इस इकाई में पृथ्वी की आकृति, आकार, और भूमध्य रेखा का विवेचन है। सिद्धांत ग्रंथों के अनुसार, पृथ्वी गोलाकार है और इसकी परिधि लगभग 4,967 योजन (1 योजन ≈ 8 किमी) बताई गई है। जलवायु क्षेत्रों (भूमध्य रेखा से ध्रुवों तक) और द्वीप-समुद्रों की व्यवस्था का भी उल्लेख मिलता है।
सूर्यादि
ग्रहों के भगण
भगण (रेवोल्यूशन) से तात्पर्य ग्रहों द्वारा निश्चित समय में पूर्ण की गई परिक्रमाओं की संख्या है। उदाहरणार्थ, सूर्य का भगण 43,20,000 वर्षों में 43,20,000 चक्र है। यह डेटा महायुग (4.32 मिलियन वर्ष) की अवधारणा से जुड़ा है। ग्रहों की मध्यम गति ज्ञात करने के लिए भगणों का उपयोग किया जाता है।
ग्रहगति
विवेचन
ग्रहों की गति मध्यम (औसत), स्पष्ट (वास्तविक), और वक्री/मार्गी (रेट्रोग्रेड/डायरेक्ट) में वर्गीकृत है। केप्लर के नियमों के समान, भारतीय सिद्धांतों में मंदोच्च-शीघ्रोच्च (एपोजी और पेरिजी) के आधार पर गति के समीकरण बनाए गए।
भूव्यास एवं स्पष्ट भूपरिधि
सूर्यसिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी की त्रिज्या 800
योजन और परिधि 5,026.5
योजन है। इसकी गणना π ≈ 3.1416 का उपयोग करके की गई, जो आधुनिक मान (40,075 किमी) के करीब है।
CHAPTER-2: ग्रहानयन
अहर्गण
का स्वरूप एवं साधन
अहर्गण किसी निर्धारित युग (जैसे कलियुग) के आरंभ
से लेकर वर्तमान तक के दिनों की संख्या है।
इसकी गणना सूत्र है:
यह ग्रहों की मध्यम स्थिति ज्ञात करने का आधार है।
मध्यमग्रह
साधन
मध्यम ग्रह =
उदाहरण: यदि सूर्य का भगण 43,20,000 है
और युग 15,77,91,78 दिनों का,
तो मध्यम सूर्य =
मन्दफल एवं शीघ्रफल
·
मन्दफल: मंदोच्च (एपोजी) के कारण गति में परिवर्तन।
·
शीघ्रफल: शीघ्रोच्च (पेरिजी) के कारण समायोजन।
इन्हें ज्या (साइन) सारणियों द्वारा गणना कर स्पष्ट ग्रह प्राप्त किया जाता है।
क्रान्ति,
आक्षांश, देशान्तर
·
क्रान्ति: ग्रह का खगोलीय अक्षांश।
·
आक्षांश: पृथ्वी के अक्ष से कोणीय दूरी।
·
देशान्तर: दो स्थानों के बीच समयांतराल।
भुजान्तर,
चरान्तर, उदयान्तर
·
भुजान्तर: ग्रह की देशांतर में अंतर।
·
चरान्तर: अक्षांश के कारण समय अंतर।
·
उदयान्तर: ग्रह के उदय समय में भिन्नता।
ग्रह स्पष्टीकरण
मध्यम ग्रह में मन्दफल, शीघ्रफल, और अन्य संशोधन जोड़कर स्पष्ट ग्रह (वास्तविक स्थिति) प्राप्त की जाती है।
CHAPTER-3: काल विवेचन
काल की
अवधारणा
काल को नित्य (अनंत) और अनित्य (सीमित) में विभाजित किया गया है। सूक्ष्म एकक जैसे त्रुटि (1/33750 सेकंड) से लेकर महायुग (43.2 लाख वर्ष) तक।
अमूर्तकाल
यह काल की दार्शनिक व्याख्या है, जैसे कालचक्र की अवधारणा, जहां समय अनादि और अनंत है।
मूर्तकाल
मूर्तकाल मापने योग्य एकक हैं:
·
तिथि: चंद्रमा और सूर्य के बीच 12° का कोण।
·
करण: तिथि का आधा भाग।
·
नक्षत्र: चंद्रमा की 27 स्थितियाँ।
भचक्र
व्यवस्था एवं ग्रहकक्षा
भचक्र 12 राशियों में विभाजित है, जिस पर ग्रह भ्रमण करते हैं। ग्रहों की कक्षाएँ अंडाकार (दीर्घवृत्त) मानी गई हैं, जिन्हें प्रतिमंडल कहा जाता है।
CHAPTER-4: नवविध कालमान
ब्राह्म एवं दिव्य मान
·
ब्राह्म मान: 1 ब्राह्म दिवस = 1000 महायुग।
·
दिव्य मान: देवताओं का 1 वर्ष = मनुष्य के 360 वर्ष।
पैत्र्य,
प्राजापत्य, बार्हस्पत्य
·
पैत्र्य मान: पितृलोक का 1 मास = 30 मानव दिन।
·
प्राजापत्य: प्रजापति का वर्ष (10,000 वर्ष)।
·
बार्हस्पत्य: बृहस्पति का 1 वर्ष = 361 मानव वर्ष।
सौर,
सावन, चान्द्र, नाक्षत्रमान
·
सौरमान: सूर्य की राशि परिवर्तन (मेष संक्रांति से)।
·
सावन: सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक (30 घटी)।
·
चान्द्र: अमावस्या से अमावस्या तक।
·
नाक्षत्र: चंद्रमा का एक नक्षत्र पार करने का समय।
अहोरात्र
व्यवस्था
दिन-रात को 30 मुहूर्त (48 मिनट प्रत्येक) में बाँटा गया। याम (3 घंटे) और घटी (24 मिनट) भी प्रयुक्त होते हैं।
अधिमास
एवं क्षयमास
·
अधिमास: चंद्र-सौर संवत्सर को संतुलित करने हेतु अतिरिक्त मास।
·
क्षयमास: दुर्लभ स्थिति में एक मास का लोप।
निष्कर्ष
सिद्धांत ज्योतिष प्राचीन भारत की वैज्ञानिक दृष्टि का प्रतीक है, जो खगोल, गणित, और दर्शन का समन्वय करता है। ग्रहगणना से लेकर कालमान तक, इसका प्रभाव आधुनिक विज्ञान में भी दिखाई देता है।
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IGNOU IMPORTANT QUESTIONS
1) सिद्धान्त की परिभाषा लिखकर विस्तृत परिचय लिखाए।
2) सिद्धान्त की प्रशंसा एवं आधुनिक सन्दर्भ में उपयोगिता लिखें।
3) ग्रहानयन एवं उनके संस्कारों को लिखें।
4) सिद्धान्त में भौगोलिक गणित के स्वरुप को लिखें।
5) सिद्धान्त में खगोलीय गणित का वर्णन करें।
6) गोलज्ञान से क्या समझते हैं, स्पष्ट करें?
7) गोलपरिभाषा का परिचय दें।
8) गोलाध्याय का वैशिष्ट्य स्पष्ट करें।
9) गोलज्ञान में महत्वपूर्ण विषयों का विवेचन करें।
10) भगण की परिभाषा लिखकर विस्तृत परिचय दें।
11) चन्दभगणोपपत्ति लिखें।
12) भगण की उपयोगिता को व्याख्यायित करें।
13) भगण के विषय में भास्कराचार्य के चिंतन का प्रतिपादन करें ।
14) सूर्यसिद्धान्तीय भगण का विवेचन करें।
15) ग्रहों के मध्यमा गति का परिचय दें।
16) गति के प्रकार का पृथक् पृथक् परिचय दें।
17) स्पष्टागति के साधन एवं उसके उपयोग पर प्रकाश डालें।
18) ग्रहगति के कारणों का उल्लेख करें।
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