MJY-001 भारतीय ज्योतिष का परिचय एवम् ऐतिहासिकता HELP BOOKS and FREE NOTES, The IGNOU MJY-001 Help Book is a comprehensive guide tailored for students pursuing the Introduction and Historicity of Indian Astrology course under Indira Gandhi National Open University (IGNOU). IGNOU MJY-001 Help Book, Indian Astrology PDF, Vedic Jyotish Study Material, IGNOU Exam Guide, Historicity of Indian Astrology, IGNOU Solved Assignments, Ancient Indian Astronomy, Panchang and Nakshatras. Designed to simplify complex concepts, this book aligns with the official syllabus to cover foundational topics like Vedic astrology, Jyotish Shastra, and the historical evolution of Indian astrological practices. MJY-001 भारतीय ज्योतिष का परिचय एवम् ऐतिहासिकता HELP BOOKS and FREE NOTES
MJY-001 भारतीय ज्योतिष का परिचय एवं ऐतिहासिकता
Chapter-wise Notes in Hindi
ज्योतिष शास्त्र
मानव की जिज्ञासा और ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने की उसकी प्रवृत्ति का परिणाम
है। प्राचीन काल में जब मनुष्य ने आकाश में चमकते हुए तारे, ग्रह, नक्षत्र देखे,
तो वह इनकी प्रकृति, गति और प्रभाव को जानने के लिए उत्सुक हुआ। इस जिज्ञासा से ही
ज्योतिष विद्या का उदय हुआ। यह विज्ञान और दर्शन का संगम है जो सृष्टि के रहस्यों
की खोज करता है।
ज्योतिष का विकास वैदिक
काल से शुरू हुआ माना जाता है। वेदों में 'नक्षत्र', 'ऋतु', 'काल' आदि शब्दों का उल्लेख
मिलता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद आदि में खगोलीय घटनाओं का विवरण मिलता है। विशेषतः
वेदांग ज्योतिष (लगभग 1200 ई.पू.) को प्राचीनतम ग्रंथ माना जाता है जिसमें काल निर्धारण,
ऋतुओं की गणना, ग्रहों की स्थिति आदि का विवरण है।
PDF &
HARDCOPY
WHATSAPP - 8130208920
VISIT –
shop.senrig.in
भारतीय ज्योतिष तीन प्रमुख
शाखाओं में विकसित हुआ:
- सिद्धांत – खगोलशास्त्र की गणनात्मक शाखा।
- संहिता – भौगोलिक, सामाजिक और प्राकृतिक घटनाओं से जुड़ा भाग।
- होरा – व्यक्तिगत कुंडली, भविष्यवाणी और फलादेश से संबंधित।
जैसे-जैसे सभ्यता का
विकास हुआ, ज्योतिष का विस्तार भी होता गया। आर्यभट, भास्कराचार्य, वराहमिहिर जैसे
महान गणितज्ञों और ज्योतिषियों ने इस विद्या को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समृद्ध किया।
वराहमिहिर की ‘बृहत्संहिता’ और आर्यभट की ‘आर्यभटीय’ ज्योतिष के अमूल्य ग्रंथ हैं।
ज्योतिष न केवल गणना
करता है बल्कि प्रकृति के साथ मानव के संबंध को भी स्पष्ट करता है। इसमें काल, दिशा,
ग्रहों का प्रभाव, नक्षत्र आदि का अध्ययन कर उनके आधार पर भविष्य की संभावना का विश्लेषण
किया जाता है।
1.1 मानवीय जिज्ञासा और ज्योतिष की उत्पत्ति
मनुष्य की जिज्ञासा प्रकृति के रहस्यों को समझने का मूल आधार रही है। प्राचीन काल में आकाशीय घटनाएँ जैसे सूर्योदय-अस्त, चंद्रमा की कलाएँ, ग्रहों की गति, तारों का टूटना, और ऋतु परिवर्तन ने मनुष्य को विस्मित किया। इन प्रश्नों के उत्तर खोजने की चाहत ने ज्योतिष शास्त्र को जन्म दिया।
1.2 वैदिक काल में ज्योतिष का आरम्भ
·
ऋग्वेद में सूर्य, चंद्र, नक्षत्रों की स्तुति मिलती है।
·
यजुर्वेद में नक्षत्रों के नाम और उनके धार्मिक महत्व का वर्णन।
·
वेदांग ज्योतिष (लगभग 1400-1200 ईसा पूर्व): ज्योतिष का प्रथम संहिताग्रंथ, जिसमें काल गणना, यज्ञों के शुभ मुहूर्त और ऋतु परिवर्तन का विवेचन है।
1.3 पौराणिक एवं क्लासिकल युग में विकास
·
महाभारत काल: नक्षत्रों के आधार पर युद्ध की रणनीति।
·
आर्यभट्ट (5वीं शताब्दी): "आर्यभटीय" ग्रंथ में ग्रहों की गणना का वैज्ञानिक विश्लेषण।
·
वराहमिहिर (6वीं शताब्दी): "बृहत्संहिता" में खगोल विज्ञान और ज्योतिष का समन्वय।
1.4 मध्यकालीन योगदान
·
भास्कराचार्य (12वीं शताब्दी): "सिद्धांत शिरोमणि" में ग्रहीय गतियों का गणितीय विवरण।
·
जैन एवं बौद्ध विद्वानों ने भी ज्योतिष को समृद्ध किया।
1.5 आधुनिक युग में प्रासंगिकता
·
वैज्ञानिक तर्कों के बावजूद ज्योतिष का सांस्कृतिक प्रभाव बना हुआ है।
·
नक्षत्र मंडलों और राशिचक्र की अवधारणा वैश्विक स्तर पर प्रसिद्ध।
CHAPTER-2: ज्योतिष शास्त्र की उपयोगिता
2.1 शिक्षा के क्षेत्र में
·
प्राचीन गुरुकुलों में त्रिस्कन्ध (सिद्धांत, संहिता, होरा) की शिक्षा दी जाती थी।
·
आज भी संस्कृत विश्वविद्यालयों में ज्योतिष पाठ्यक्रम संचालित हैं।
2.2 समाज में भूमिका
·
विवाह, गृहप्रवेश, नामकरण जैसे संस्कारों में मुहूर्त का चयन।
·
जातक कुंडली के आधार पर व्यक्तित्व और भविष्यवाणी।
2.3 पर्यावरण से सम्बन्ध
·
ऋतु परिवर्तन और खेती की गतिविधियाँ नक्षत्रों (जैसे- रोहिणी, मृगशिरा) पर आधारित।
·
वर्षा का पूर्वानुमान गजकेसरी योग या मेघमाला सिद्धांतों से।
2.4 स्वास्थ्य और ज्योतिष
·
नवग्रह और शरीर के अंगों का सम्बन्ध (जैसे- सूर्य हृदय, चंद्र मन)।
·
रोग निदान में चंद्र राशि और दशा-अंतर्दशा का प्रयोग।
2.5 विभिन्न समस्याओं का समाधान
·
ग्रह दोष के लिए रत्न धारण, मंत्र जाप, यज्ञ।
·
वास्तु शास्त्र के साथ समन्वय से भूमि और भवन का शुभ संयोजन।
CHAPTER-3: ज्योतिष शास्त्र के अंग
3.1 त्रिस्कन्धात्मक संरचना
1. सिद्धांत (गणितीय ज्योतिष):
o
ग्रहों की गति, ग्रहण, युति की गणना।
o
प्रमुख ग्रंथ: सूर्य सिद्धांत, पंचसिद्धांतिका।
2. संहिता (सामुद्रिक शास्त्र):
o
भूकंप, वर्षा, राज्यशासन की भविष्यवाणी।
o
प्रमुख ग्रंथ: बृहत्संहिता, फलदीपिका।
3. होरा (जन्म कुंडली विश्लेषण):
o
राशि, भाव, ग्रह दशा का व्यक्तिगत प्रभाव।
o
प्रमुख ग्रंथ: बृहत्पाराशर होरा शास्त्र, जातक पारिजात।
3.2 स्कन्धों का पारस्परिक सम्बन्ध
·
सिद्धांत के बिना संहिता और होरा अधूरी हैं।
·
उदाहरण: ग्रह स्थिति (सिद्धांत) के आधार पर फलादेश (होरा)।
CHAPTER-4: ज्योतिष में सृष्टि, प्रलय, पृथ्वी, दिग्व्यवस्था
4.1 सृष्टि उत्पत्ति के सिद्धान्त
·
सांख्य दर्शन: प्रकृति-पुरुष से ब्रह्मांड की उत्पत्ति।
·
वैदिक सिद्धान्त: हिरण्यगर्भ (स्वर्ण अंड) से सृष्टि।
4.2 सौर मंडल और पृथ्वी
·
पृथ्वी को भुवर्लोक कहा गया, जो नवग्रहों के प्रभाव में है।
·
सूर्य की परिक्रमा और ऋतु परिवर्तन का खगोलीय आधार।
4.3 दिशा और देश की अवधारणा
·
दिग्बन्ध: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और उपदिशाएँ।
·
देश भेद: भारत को जम्बूद्वीप और भारतखंड के रूप में वर्णित।
4.4 काल मापन
·
त्रुटि (सबसे छोटा इकाई) से लेकर महायुग (4.32 लाख वर्ष) तक।
·
मानव जीवन के लिए वर्ष, मास, दिन, घटी की प्रणाली।
4.5 प्रलय की अवधारणा
·
महाप्रलय: ब्रह्मा के एक दिन (कल्प) के अंत में सृष्टि का विलय।
·
नित्य प्रलय: प्रतिदिन होने वाला सूक्ष्म विश्रांति (रात्रि)।
PDF & HARDCOPY
WHATSAPP - 8130208920
VISIT – shop.senrig.in
निष्कर्ष
भारतीय ज्योतिष केवल भविष्य बताने का साधन नहीं, बल्कि ब्रह्मांडीय सत्य और मानव जीवन के समन्वय का विज्ञान है। इसकी ऐतिहासिकता, बहुआयामी उपयोगिता और गहन सिद्धांत इसे सनातन ज्ञान का अमूल्य अंग बनाते हैं। MJY-001 भारतीय ज्योतिष का परिचय एवम् ऐतिहासिकता HELP BOOKS and FREE NOTES
WHATSAPP - 8130208920
VISIT –
shop.senrig.in
IGNOU IMPORTANT QUESTIONS
1. संस्कृत भाषा के उद्भव व वैशिष्ट्य का वर्णन करें।
2. वैदिक साहित्य का संक्षिप्त परिचय प्रदान करें।
3. वेदाङ्गों का संक्षिप्त वर्णन करें।
4. काव्य शास्त्र का संक्षिप्त परिचय प्रदान करें।
5. आयुर्वेद का परिचय प्रदान करें।
6. ज्योतिष की परिभाषा लिखते हुये ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकों का वर्णन कीजिये।
7. ज्योतिष के स्कन्धों का संक्षिप्त परिचय प्रदान कीजिये।
8. ज्योतिष के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
9. ज्योतिष की वर्तमान समय में उपयोगिता पर प्रकाश डालिये।
10. ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
11. ज्योतिष शास्त्र के विकास क्रम का प्रतिपादन कीजिये।
12. ज्योतिष के वैशिष्ट्य के सन्दर्भ में विभिन्न विद्वानों का मत उपस्थापित कीजिये।
13. ज्योतिष के आधुनिक काल में विकास पर निबन्ध लिखिये।
14. ज्योतिष की वेदांगता का प्रतिपादन कीजिये।
15. वेदांग ज्योतिष का तात्पर्य स्पष्ट कीजिये।
16. वैदिक ज्योतिष में वर्णित नक्षत्र स्वरूप का प्रतिपादन कीजिये।
17. वेदांग ज्योतिष पर निबन्ध लिखिये।
18. लगधप्रोक्त वेदांग ज्योतिष के काल निर्धारण का वर्णन करें।
19. वैदिक ज्योतिष में वर्णित मास व ऋतुओं की परिकल्पना का प्रतिपादन कीजिये।
0 comments:
Note: Only a member of this blog may post a comment.