विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद से आप क्या समझते हैं

विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद से आप क्या समझते हैं

विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद से आप क्या समझते हैं-विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद दो प्रमुख राजनीतिक और सामाजिक विचारधाराएं हैं, जो समाज के सुधार और प्रगति की दिशा में विभिन्न दृष्टिकोणों को अभिव्यक्त करती हैं। इन दोनों सिद्धांतों के बीच की मुख्य भिन्नताओं को समझने के लिए हमें इनके उत्पत्ति, सिद्धांत, और प्रचार-प्रसार को विस्तार से विश्लेषण करना होगा।

विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद से आप क्या समझते हैं

विकासवाद:

1. उत्पत्ति: विकासवाद का उदय विकासशील देशों में हुआ था जब इन देशों ने आर्थिक विकास की दिशा में कदम बढ़ाया था। इस दृष्टिकोण का उदय शताब्दी के पश्चिमी देशों में हुआ जिनमें औद्योगिक क्रांति और वैज्ञानिक उन्नति के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका थी। यहां तक कि एक दृष्टिकोण के अनुयायियों ने यह मान्य किया कि आर्थिक विकास ही सबसे महत्वपूर्ण है और इसका सीधा परिणाम है कि समृद्धि और कल्याण सभी समस्याओं का समाधान हैं।

2. सिद्धांत: विकासवाद का मौखिक मूल्यांकन आर्थिक परिप्रेक्ष्य में होता है और इसका मुख्य उद्देश्य धन की अधिग्रहण को बढ़ाना और आर्थिक सामरिकता को बनाए रखना है। यह धन के प्रचुरता, निर्माण, और उत्पादन की बढ़ती वृद्धि पर जोर देता है और इसे मुख्य सुधारक बनाए रखना है।

3. अनुयायी सामाजिक व्यवस्था: विकासवाद विशेषकर उन देशों में प्रभावी रहा है जिनमें उच्च आर्थिक विकास हुआ है, और इसने अपनी राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने का प्रयास किया है। इस दृष्टिकोण से आत्मनिर्भर और सकारात्मक समाजों का आदान-प्रदान है जो विभिन्न स्तरों पर सामाजिक सुधारों को लेकर काम करते हैं।

4. आर्थिक स्वतंत्रता: विकासवाद का एक और महत्वपूर्ण पहलु आर्थिक स्वतंत्रता है। इसे यह मानते हैं कि आर्थिक स्वतंत्रता से ही समृद्धि और सुविकसित समाज बन सकता है। 

विकासवादी और क्रांतिकारी समाजवाद से आप क्या समझते हैं-यह आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन के सिद्धांत पर आधारित है।

क्रांतिकारी समाजवाद:

1. उत्पत्ति: क्रांतिकारी समाज वाद का उदय सोवियत संघ, चीन, और अन्य कई देशों में हुआ, जहां सामाजिक और आर्थिक समानता के प्रति जागरूकता बढ़ रही थी। इस सिद्धांत का उद्दीपन कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक इंगल्स द्वारा किया गया, जिन्होंने अपने साहित्यिक कामों में समाजवाद के सिद्धांतों को विस्तार से व्यक्त किया।

2. सिद्धांत: क्रांतिकारी समाजवाद का मौखिक मूल्यांकन सामाजिक और आर्थिक समानता की दृष्टि से होता है और इसका मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों के बीच समानता बनाए रखना है। यह सामाजिक न्याय, समरसता, और समृद्धि के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने की कोशिश करता है और धन की समान वितरण के लिए आंदोलन करता है।

3. सामाजिक व्यवस्था: क्रांतिकारी समाजवाद ने अपने सिद्धांतों के माध्यम से एक न्यायपूर्ण और समृद्ध सामाजिक व्यवस्था का अनुसरण किया है। इसका मूल उद्देश्य विशेषता और असमानता को दूर करना है और समृद्धि को समर्थन करना है। समाजवाद के तत्वों में न्याय, स्वतंत्रता, और समृद्धि के सिद्धांत शामिल हैं।

4. सामाजिक परिवर्तन: क्रांतिकारी समाजवाद समाज में व्यापक परिवर्तन की बात करता है और सामाजिक व्यवस्था में पुनर्निर्माण का परिचय कराता है। यह समृद्धि, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं को समानता के साथ बाँटने का विचार करता है।

5. आत्मनिर्भरता और समाजवाद: क्रांतिकारी समाजवाद में स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का महत्व बहुत उच्च होता है। इसके अनुयायियों का मानना है कि समृद्धि के लिए स्वतंत्र और समर्थ समाज की आवश्यकता है ताकि वह अपनी जरूरतों को स्वयं पूरा कर सके और उसे अन्य राष्ट्रों की आधारित नहीं होना पड़े।

6. राजनीतिक प्रणाली: क्रांतिकारी समाजवाद में राजनीतिक प्रणाली अक्सर सामरिक और सामाजिक समानता के सिद्धांतों पर आधारित है। इसका मानना है कि समृद्धि और समरसता के लिए राजनीतिक व्यवस्था को इन मूल सिद्धांतों के साथ समर्थित किया जाना चाहिए।

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7. आर्थिक नियंत्रण और सामरिक सुरक्षा: क्रांतिकारी समाजवाद में आर्थिक सुधार और नियंत्रण का महत्वपूर्ण स्थान है। इसका मुख्य उद्देश्य धन की समान वितरण और आर्थिक समृद्धि के साथ समरसता बनाए रखना है। सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से भी यह मानता है कि समाज के हर व्यक्ति को आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा का हक होना चाहिए।

8. सामाजिक समरसता: समरसता का सिद्धांत क्रांतिकारी समाजवाद के मूल तत्वों में से एक है। इसका मानना है कि समृद्धि का अच्छा वितरण और समाज में समरसता को बनाए रखने के लिए समाज में समानता और न्याय का पूरा होना चाहिए।

9. शिक्षा और सांस्कृतिक विकास: सामाजिक समरसता के माध्यम से क्रांतिकारी समाजवाद का समर्थन शिक्षा और सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देता है। इसका मानना है कि शिक्षा समृद्धि और सामरसता की कुंजी है और समाज को उन्नति की ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए लोगों को शिक्षित बनाए रखना चाहिए।

10. गणराज्य और सामरिक संगठन: क्रांतिकारी समाजवाद का समर्थन गणराज्यी और सामरिक संगठनों को बढ़ावा देता है जो समृद्धि की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। इससे लोगों को सामरिक न्याय और सामरसता की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद मिलती है।

11. राजनीतिक प्रणाली: क्रांतिकारी समाजवाद में राजनीतिक प्रणाली का अधिकतम महत्व है। इसमें सामाजिक न्याय, नैतिकता, और सामरसता के मूल सिद्धांतों को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है। यह एक समाज को समृद्धि और सामरसता की दिशा में बढ़ावा देने के लिए लोगों को एक मजबूत और न्यायपूर्ण राजनीतिक प्रणाली की आवश्यकता को समझता है।

12. समर्थ समाज: क्रांतिकारी समाजवाद का समर्थन करने वाले व्यक्तियों का मानना है कि एक समर्थ और समृद्ध समाज को बनाए रखने के लिए उच्चतम स्तर की सामरिक संगठन और सहयोग की आवश्यकता है। यह समर्थ समाज बनाए रखने के लिए लोगों को साम रिक संगठन और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुशल बनाने का मुद्दा उठाता है।

13. विश्व समरसता: क्रांतिकारी समाजवाद का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत विश्व समरसता का है। इसका मानना है कि समृद्धि और समाज के सभी हिस्सों को मिलना चाहिए और इसे एक विश्व समृद्धि की दिशा में बढ़ावा देना चाहिए।

14. सामाजिक न्याय और नैतिकता: सामाजिक न्याय और नैतिकता के मामले में क्रांतिकारी समाजवाद का स्थान है। इसका मुख्य उद्देश्य समाज में न्याय, सच्चाई, और नैतिकता को बनाए रखना है ताकि लोगों को भलाई की दिशा में सही कदम उठाने में मदद हो सके।

15. समृद्धि का सामाजिक परिचय: क्रांतिकारी समाजवाद ने यहां तक कहा है कि समृद्धि का सामाजिक परिचय होना चाहिए। इसका मत है कि समृद्धि को समाज में विशेषता और समरसता के साथ बाँटा जाना चाहिए, ताकि हर व्यक्ति इसका उचित हिस्सा प्राप्त कर सके।

16. जनसभा और लोकतंत्र: क्रांतिकारी समाजवाद ने जनसभा और लोकतंत्र को भी महत्वपूर्ण माना है। इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को सामरसता और न्याय की दिशा में ले जाने के लिए सकारात्मक रूप से लोकतंत्रिक प्रणाली का समर्थन करना है।

17. आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन: समाज में आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन का सिद्धांत क्रांतिकारी समाजवाद के मूल तत्वों में से एक है। इसका मत है कि लोगों को स्वतंत्रता और स्वावलंबन के साथ अपनी जरूरतों को पूरा करने का अधिकार होना चाहिए।


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