FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक Solved Assignmnet Jan–Dec 2025

FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक Solved Assignmnet Jan–Dec 2025
FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक Solved Assignmnet Jan–Dec 2025

भाग (क)

Q1. विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे किन्हें कहते हैं, उदाहरण देते हुए स्पष्ट करें।

🔷 प्रस्तावना:

हर बच्चा अद्वितीय होता है। परंतु कुछ बच्चे शारीरिक, मानसिक, संवेदी या बौद्धिक स्तर पर अन्य बच्चों की तुलना में अलग होते हैं। ऐसे बच्चों को विशेष देखभाल, शिक्षा एवं संसाधनों की आवश्यकता होती है। इन्हें "विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे" (Children with Special Needs - CWSN) कहा जाता है।

🔷 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की परिभाषा:

विशेष आवश्यकताओं वाले वे बच्चे होते हैं जिन्हें सामान्य विकास और शिक्षा के लिए अतिरिक्त सहायता, संसाधन या वातावरण की आवश्यकता होती है। इनमें वे बच्चे शामिल हैं जिन्हें कोई शारीरिक विकलांगता, बौद्धिक दुर्बलता, सीखने में कठिनाई, संवेदी हानि (दृष्टि या श्रवण), संप्रेषण विकार या व्यवहारिक समस्या होती है।

🔷 प्रकार और उदाहरण:

नीचे सारणी के माध्यम से विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों के विभिन्न प्रकार और उनके उदाहरण दर्शाए गए हैं:

प्रकार

विवरण

उदाहरण

1. शारीरिक अक्षमता (Physical Disability)

जब बच्चे को चलने, बैठने, पकड़ने आदि में कठिनाई होती है।

सेरेब्रल पाल्सी, पोलियो

2. बौद्धिक अक्षमता (Intellectual Disability)

जब बच्चे का आईक्यू (IQ) सामान्य से कम हो और सीखने में देरी हो।

डाउन सिंड्रोम, माइल्ड इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी

3. श्रवण बाधित (Hearing Impaired)

सुनने की क्षमता में कमी या के बराबर होना।

बधिरता, धीमी श्रवण क्षमता

4. दृष्टिबाधित (Visually Impaired)

देखने की क्षमता में कमी या पूर्ण रूप से अंधापन।

आंशिक दृष्टिहीनता, संपूर्ण अंधता

5. व्यवहार और सामाजिक समस्या

जब बच्चा सामाजिक संबंध बनाने या भावनात्मक प्रतिक्रिया देने में कठिनाई अनुभव करता है।

ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर

6. अधिगम विकलांगता (Learning Disability)

सामान्य बुद्धि होने के बावजूद पढ़ने, लिखने, गणना करने में कठिनाई।

डिस्लेक्सिया, डिस्ग्राफिया, डिस्कैलकुलिया

7. भाषायी और संवाद समस्या

बोलने या समझने में कठिनाई होना।

हकलाना, भाषा में देरी

🔷 उदाहरण के माध्यम से स्पष्टता:

🔸 उदाहरण 1:

आरव, 7 वर्ष का बच्चा है जिसे बोलने में कठिनाई है। वह केवल इशारों से अपनी बात समझाता है। डॉक्टर ने उसे स्पीच डिसऑर्डर बताया और उसे विशेष स्पीच थेरेपी की सलाह दी गई।

🔸 उदाहरण 2:

सिया, 5 वर्ष की बच्ची है, जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर है। वह सामाजिक बातचीत में कम भाग लेती है, आँखों में आँख डालकर बात नहीं करती, और केवल एक ही खिलौने से बार-बार खेलती है।

🔸 उदाहरण 3:

राज, 6 साल का बच्चा जिसे पढ़ने में कठिनाई है। उसे डिस्लेक्सिया है, और अक्षरों को उल्टा पढ़ता है। वह सामान्य बुद्धि का है, लेकिन पढ़ाई में पिछड़ रहा है।

🔷 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की आवश्यकताएँ:

  • व्यक्तिगत शिक्षण योजना (IEP)प्रत्येक बच्चे की आवश्यकता के अनुसार अलग शिक्षण पद्धति अपनाना।
  • समावेशी कक्षासभी बच्चों को एक साथ पढ़ाना और विशेष बच्चों को सपोर्ट देना।
  • सहायक उपकरणजैसे ब्रेल किताबें, हियरिंग एड, वॉकर आदि।
  • थेरेपीस्पीच, ऑक्यूपेशनल, फिजियोथेरेपी।
  • मनोवैज्ञानिक सहायताभावनात्मक सहयोग और व्यवहार प्रबंधन।

🔷 विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों की पहचान:

  • धीमी प्रतिक्रिया देना
  • आँखों से संपर्क करना
  • शब्दों की पुनरावृत्ति करना
  • साथी बच्चों से अलग रहना
  • खेल-कूद में भाग लेना

🔷 उनके प्रति सामाजिक दृष्टिकोण:

समाज में अब भी कई बार इन बच्चों को "कमज़ोर", "असामान्य" या "बोझ" समझा जाता है। यह सोच बदलना आवश्यक है। समावेशी शिक्षा एवं समुदायिक जागरूकता से हम इन बच्चों को समान अधिकार और अवसर दिला सकते हैं।

🔷 माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका:

  • समझदारी और धैर्य से कार्य लेना।
  • विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करना।
  • बच्चों की खूबियों पर ध्यान देना, कि केवल कमज़ोरियों पर।
  • सकारात्मक प्रतिक्रिया और प्रोत्साहन देना।

🔷 सरकारी पहल:

भारत सरकार ने कई योजनाएँ चलाई हैं जैसे:

  • समग्र शिक्षा अभियान (Samagra Shiksha Abhiyan)
  • राष्ट्रीय समावेशी शिक्षा कार्यक्रम
  • विकलांग अधिकार अधिनियम, 2016
  • आरटीई (RTE) में समावेशी शिक्षा

🔷 निष्कर्ष (Conclusion):

विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चे समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। हमें उन्हें "सक्षम" बनाने के लिए उनके अनुसार वातावरण, संसाधन और समर्थन देना चाहिए। सही मार्गदर्शन, शिक्षा और सामाजिक सहयोग से ये बच्चे भी अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। हमें उनके "अधिकारों, गरिमा और सम्मान" का ध्यान रखना होगा।

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Q2. निम्नलिखित प्रत्येक का 400 शब्दो में वर्णन कीजिए।

() संचार के रूप में भूमिका अभिनय

() प्रतिकूल अभिवृत्ति वाले माता-पिता

() भारत में शालापूर्व शिक्षा में ताराबाई मोदक का योगदान

() संचार के अवयव

() संचार के रूप में भूमिका अभिनय (Role Play as a Method of Communication)

प्रस्तावना:

संचार एक ऐसा माध्यम है जिससे हम विचारों, भावनाओं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। शिक्षा और बाल विकास के क्षेत्र में "भूमिका अभिनय" एक प्रभावशाली संचार विधि है। यह केवल बच्चों को अपने विचार व्यक्त करने में मदद करता है, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक विकास को भी प्रोत्साहित करता है।

भूमिका अभिनय की परिभाषा:

भूमिका अभिनय वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति किसी स्थिति, पात्र या भावना को अभिनय के माध्यम से दर्शाता है। यह सीखने की प्रक्रिया को रोचक और व्यावहारिक बनाता है।

विशेषताएँ:

  • अनौपचारिक शिक्षण का माध्यम
  • सामाजिक परिस्थिति का प्रतिरूप
  • भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम
  • समूह कार्य की भावना विकसित करता है

संचार के लिए इसकी उपयोगिता:

1.     शब्दों से परे संप्रेषण: बच्चों को केवल शब्द नहीं, बल्कि हावभाव, स्वर और गतिविधियों द्वारा संप्रेषण सिखाया जाता है।

2.     सुनने और प्रतिक्रिया देने का अभ्यास: भूमिका अभिनय के दौरान बच्चे एक-दूसरे की बात सुनते हैं और त्वरित प्रतिक्रिया देते हैं, जिससे संवाद कौशल बेहतर होता है।

3.     सामाजिक समस्याओं की समझ: बच्चों को विभिन्न भूमिकाओं में रखकर सामाजिक मुद्दों जैसेभेदभाव, सहयोग, दोस्तीपर चर्चा कराई जा सकती है।

4.     संवेदनशीलता और सहानुभूति का विकास: जब बच्चा किसी अन्य की भूमिका निभाता है, तो वह उसके दृष्टिकोण को समझता है।

उदाहरण:

1.     'बाज़ार में खरीददारी'एक बच्चा दुकानदार, दूसरा ग्राहक बनकर संवाद करते हैं।

2.     'स्कूल में पहला दिन'बच्चा शिक्षक या नया छात्र बनकर भूमिका निभाता है।

शिक्षकों के लिए भूमिका:

  • उपयुक्त विषय चुनना
  • भूमिका के लिए दिशा निर्देश देना
  • बच्चों को आत्मविश्वास देना
  • निष्कर्ष निकालने में मदद करना

निष्कर्ष:

भूमिका अभिनय केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं है, यह एक गहन शिक्षण प्रक्रिया है जो बच्चों के संचार कौशल, सामाजिक जागरूकता और आत्मविश्वास को सशक्त बनाती है।

() प्रतिकूल अभिवृत्ति वाले माता-पिता (Parents with Hostile Attitude)

प्रस्तावना:

बच्चों के विकास में माता-पिता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। परंतु जब माता-पिता की सोच या व्यवहार प्रतिकूल, कठोर या शत्रुतापूर्ण होता है, तो वह बच्चे के मानसिक और भावनात्मक विकास पर गहरा असर डालता है।

प्रतिकूल अभिवृत्ति की पहचान:

  • बच्चे पर बार-बार चिल्लाना या मारना
  • उसकी बातों को नज़रअंदाज़ करना
  • तुलना कर उपेक्षा करना
  • बच्चों को दोष देना या शर्मिंदा करना

कारण:

1.     अस्वीकृति का भावबच्चा अपेक्षा अनुसार नहीं होता।

2.     अतीत के अनुभवमाता-पिता स्वयं प्रताड़ना झेल चुके होते हैं।

3.     तनाव और आर्थिक संकटघर की समस्याएं बच्चे पर उतार दी जाती हैं।

4.     कम समझ या शिक्षा का अभावपालन-पोषण की सकारात्मक पद्धतियों की जानकारी नहीं होती।

प्रभाव:

  • आत्म-सम्मान में कमी
  • भय और असुरक्षा की भावना
  • आक्रोश या विद्रोही व्यवहार
  • भावनात्मक दूरी

शिक्षक / देखभालकर्ता की भूमिका:

  • माता-पिता को सकारात्मक अनुशासन सिखाना
  • पैरेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन
  • बच्चों की भावनात्मक सुरक्षा सुनिश्चित करना
  • माता-पिता से संवाद में संवेदनशीलता रखना

निष्कर्ष:

प्रतिकूल अभिवृत्ति केवल बच्चे के लिए नहीं, पूरे परिवार के लिए हानिकारक होती है। इसके समाधान के लिए शिक्षकों, परामर्शदाताओं और समाज को मिलकर कार्य करना चाहिए।

() भारत में शालापूर्व शिक्षा में ताराबाई मोदक का योगदान

प्रस्तावना:

भारत में शालापूर्व शिक्षा की नींव रखने वालों में ताराबाई मोदक का नाम अग्रणी है। वे एक समाज सुधारक, शिक्षाविद् और बाल हितैषी थीं, जिन्होंने ग्रामीण भारत में बाल शिक्षा की एक नई दिशा दी।

जीवन परिचय:

  • जन्म: 19 अप्रैल 1892, महाराष्ट्र
  • शिक्षा: स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाली पहली महिलाओँ में से एक
  • समाज सुधारक गोपाल कृष्ण गोखले से प्रभावित

योगदान:

1.     बालवाड़ी की स्थापना: 1920 के दशक में, उन्होंने ग्रामीण बच्चों के लिए पहली बालवाड़ी (Preschool) शुरू की।

2.     कम लागत की शिक्षण सामग्री: उन्होंने माटी, लकड़ी, पत्थर, आदि से खेल सामग्री बनाई जिससे गरीब वर्ग के बच्चे भी शिक्षा पा सकें।

3.     बालकेंद्रित शिक्षा प्रणाली: उन्होंने मोंटेसरी फ्रोबेल पद्धतियों को भारतीय संदर्भ में अपनाया।

4.     शिक्षकों का प्रशिक्षण: स्थानीय महिलाओं को प्रशिक्षित कर उन्हें शिक्षक बनाया।

5.     समुदाय भागीदारी: ग्रामवासियों को शिक्षा के महत्व के लिए प्रेरित किया।

ताराबाई की दृष्टि:

  • "शिक्षा, खेल और जीवन अनुभवों का मेल है।"
  • उन्होंने शालापूर्व शिक्षा को केवल अल्फाबेट सिखाने तक सीमित नहीं रखा।

प्रभाव:

  • उन्होंने शिक्षा को गरीबों के द्वार तक पहुँचाया।
  • आज की ECCE नीतियाँ उनकी ही दृष्टिकोण से प्रेरित हैं।

निष्कर्ष:

ताराबाई मोदक की दूरदर्शिता ने भारत में शालापूर्व शिक्षा की मजबूत नींव रखी। उनका कार्य आज भी शिक्षकों और नीति निर्माताओं के लिए प्रेरणा है।

() संचार के अवयव (Elements of Communication)

प्रस्तावना:

संचार एक द्विपक्षीय प्रक्रिया है जिसमें जानकारी का आदान-प्रदान होता है। यह प्रक्रिया कई घटकों (अवयवों) से मिलकर बनती है, जिनके सही संयोजन से संप्रेषण सफल होता है।

संचार के प्रमुख अवयव:

अवयव

विवरण

1. प्रेषक (Sender)

जो सूचना भेजता है, जैसे शिक्षक या माता-पिता

2. संदेश (Message)

जो बात कही जा रही हैविचार, सूचना, आदेश आदि

3. माध्यम (Medium)

जिसके द्वारा संदेश भेजा गयाबोली, लिखावट, चित्र आदि

4. प्राप्तकर्ता (Receiver)

जो संदेश को ग्रहण करता हैबच्चा, शिक्षक, अभिभावक

5. अभिप्रेषण (Encoding)

विचार को शब्द, संकेत या भाव में बदलना

6. ग्रहण (Decoding)

संदेश को समझना और उसका अर्थ निकालना

7. प्रतिपुष्टि (Feedback)

प्राप्तकर्ता द्वारा प्रतिक्रिया देना

8. अवरोध (Noise)

कोई भी बाधा जो संचार को प्रभावित करेशोर, भ्रम, दूरी आदि

उदाहरण:

एक शिक्षक जब बच्चे को कहानी सुनाता है, वह प्रेषक होता है। कहानी संदेश है, बोलने की प्रक्रिया माध्यम, बच्चा प्राप्तकर्ता, उसकी मुस्कान प्रतिक्रिया और पीछे चल रहा टीवी अवरोध हो सकता है।

प्रभावी संचार के लिए सुझाव:

  • स्पष्ट और सरल भाषा का प्रयोग
  • दृष्टि संपर्क बनाए रखना
  • बच्चे की प्रतिक्रिया पर ध्यान देना
  • सांस्कृतिक एवं भाषाई विविधता को समझना

निष्कर्ष:

संचार केवल बोलना नहीं, समझना और प्रतिक्रिया देना भी है। जब इसके सभी अवयव समन्वय में हों, तभी संचार प्रभावशाली होता हैविशेष रूप से शालापूर्व शिक्षा में।

Q3. शालापूर्व अध्यापिका / देखभलकर्त्ता निम्नलिखित से कैसे निपट सकती है ?

) विन्विर्तित व्यवहार वाला बालक

) डर दुर्मीति से ग्रस्त बच्चा

()  विन्विर्तित व्यवहार वाला बालक

प्रस्तावना:

विनिवृत्त व्यवहार वाला बालक वह होता है जो सामाजिक सहभागिता से बचता है, अकेलापन पसंद करता है, संवाद में रुचि नहीं दिखाता और अक्सर भीड़ में गुमनाम सा रहता है। यह व्यवहार चिंता, आत्म-संकोच, आत्मविश्वास की कमी या पारिवारिक कारणों से विकसित हो सकता है। शालापूर्व स्तर पर ऐसे बच्चों की पहचान और सही हस्तक्षेप उनके भविष्य के मानसिक और सामाजिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

विनिवृत्त व्यवहार की विशेषताएँ:

  • अन्य बच्चों से दूर रहना
  • अकेले खेलना, सहभागिता से बचना
  • शिक्षक से आँख मिलाना
  • निर्देशों में ढीलापन या संकोच
  • आत्म-विश्वास की कमी
  • असामान्य रूप से शांत या डरपोक रहना

संभावित कारण:

कारण

विवरण

पारिवारिक वातावरण

उपेक्षा, झगड़े या अधिक नियंत्रण

सामाजिक असुरक्षा

दूसरों से तुलना, बार-बार आलोचना

आत्म-विश्वास की कमी

असफलता का डर या खुद को अयोग्य समझना

आघात

किसी घटना से मानसिक असर

अध्यापिका की भूमिका:

1. संवेदनशील निरीक्षण करना:

  • बच्चे की दिनचर्या, संवाद शैली और खेल व्यवहार का सावधानीपूर्वक अवलोकन करें।
  • लगातार अलगाव या संवादहीनता पर ध्यान दें।

2. सुरक्षित और स्वागतपूर्ण वातावरण देना:

  • कक्षा का वातावरण ऐसा बनाएं जहाँ बच्चा आत्मीयता महसूस करे।
  • प्यार, स्वीकृति और सराहना से बच्चे को अपनापन दें।

3. एक-से-एक संवाद बढ़ाना:

  • बच्चा समूह में सहज हो तो निजी तौर पर संवाद करें।
  • उसकी रुचियों (जैसे चित्र बनाना, मिट्टी से खेलना) के आधार पर बातचीत करें।

4. छोटे समूह में सम्मिलित करना:

  • समूह गतिविधियों में बच्चे को धीरे-धीरे शामिल करें। उसे शुरू में सिर्फ देखना भी दिया जा सकता है।
  • तू और मैंप्रकार की गतिविधियाँ जैसे दो बच्चों में बॉल फेंकना।

5. सकारात्मक प्रतिक्रिया देना:

  • छोटी-छोटी उपलब्धियों की भी प्रशंसा करें।
  • उसका नाम लेकर सकारात्मक शब्दों में पुकारें।

6. परिवार से सहयोग लेना:

  • माता-पिता को समझाएं कि वे बच्चे की बातों को बिना टोके सुनें, उसे निर्णय लेने दें।
  • घर का वातावरण सहायक और प्रेरणादायक रखें।

7. भावनात्मक सहायता देना:

  • यदि बच्चा चिंता या भय में हो, तो उसे कहानी, चित्रों या ड्रामा से भावनाएँ व्यक्त करने दें।
  • "भावनात्मक कोना" या "Calm Corner" बनाएं जहाँ वह आराम महसूस करे।

8. कला और खेल का प्रयोग:

  • रंग, संगीत, और नाटक के माध्यम से आत्म-अभिव्यक्ति का प्रोत्साहन दें।

निष्कर्ष:

विनिवृत्त व्यवहार वाले बालक को प्रेम, धैर्य और सहयोग की ज़रूरत होती है। अध्यापिका एक संवेदनशील मार्गदर्शक बनकर उसकी दुनिया में प्रवेश करे तो वह धीरे-धीरे खुलेगा और सामाजिक रूप से सशक्त बनेगा।

() डर और दुर्मीति से ग्रस्त बच्चा (Child with Fear and Phobia) से कैसे निपटे?

प्रस्तावना:

डर और फोबिया छोटे बच्चों में आम है, लेकिन जब यह अत्यधिक हो जाए तो यह उनके विकास और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। शालापूर्व स्तर पर अध्यापिका की यह ज़िम्मेदारी है कि वह भयग्रस्त बच्चे को समझे, उसका विश्वास जीते और उसे भय से मुक्त होने में सहायता करे।

डर और फोबिया में अंतर:

विशेषता

डर (Fear)

फोबिया (Phobia)

स्वाभाविकता

सामान्य

अत्यधिक, असामान्य

कारण

स्पष्ट और तर्कसंगत

अतार्किक और बारंबार

प्रतिक्रिया

असहजता, रोना

घबराहट, कांपना, दौड़ लगाना

नियंत्रण

संभव

मुश्किल

बच्चों में सामान्य भय:

  • अंधेरे से डर
  • जानवरों से डर
  • अकेले रहने से भय
  • अध्यापक या अजनबी से डर
  • ऊँचाई या पानी से डर

अध्यापिका की रणनीतियाँ:

1. डर के स्रोत को पहचानना:

  • किस परिस्थिति में बच्चा डरता है, यह जानने के लिए अवलोकन करें।
  • क्या डर विशिष्ट व्यक्ति, वस्तु या स्थान से है?

2. डर को अस्वीकार करें:

  • बच्चे की भावनाओं कोनाटक मत कर”, “तू बच्चा नहीं रहाजैसे शब्दों से झूठलाएं।
  • कहें – "मैं समझती हूँ, अंधेरे से डर लग सकता है। चलो एक साथ देखते हैं।"

3. धीरे-धीरे परिचय देना (Desensitization):

  • डर का सामना एकदम करवाएं।
  • जैसेअंधेरे से डरने वाले को पहले धीमे प्रकाश में रहने की आदत डालें।

4. कहानी, चित्र और नाटक से मदद:

  • डर से जुड़े विषयों पर सकारात्मक कहानियाँ सुनाएं।
  • "छोटा शेर जो डरता था पर बहादुर बना" जैसी कहानी प्रेरक हो सकती है।

5. आत्म-नियंत्रण सिखाना:

  • बच्चे को साँस लेने की आसान विधियाँ सिखाएंजैसेगहरी सांस लो और छोड़ो
  • गिनती करो जब डर लगे” – इससे ध्यान हटता है।

6. अन्य बच्चों का उदाहरण देना:

  • समूह गतिविधियों में उन्हीं बच्चों को सामने लाना जो उस डर से उबर चुके हों।

7. माता-पिता से संवाद:

  • घर का वातावरण डर को बढ़ाएजैसे बार-बार डाँटना, धमकाना आदि।
  • टीवी या मोबाइल पर डरावनी सामग्री दिखाएँ।

8. सकारात्मक सुदृढ़ीकरण देना:

  • जब बच्चा थोड़ा भी साहस दिखाए, उसकी प्रशंसा करें।
  • वाह, आज तुमने अकेले वॉशरूम का दरवाज़ा खोला!”

निष्कर्ष:

डर और फोबिया बच्चे की कल्पनाशक्ति और अनुभव से जुड़ा होता है। यदि अध्यापिका समझदारी, करुणा और सकारात्मक प्रयासों से बच्चे के साथ जुड़ती है, तो बच्चा धीरे-धीरे अपने भय को पहचानकर उसे नियंत्रित करना सीख सकता है।

Q4. समुदाय आधारित पुनः स्थापन की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए

ANS. प्रस्तावना:

समाज में विशेष आवश्यकताओं वाले व्यक्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, जिनमें विकलांगता, मानसिक चुनौतियाँ, या अन्य सामाजिक सीमाएँ हो सकती हैं। पारंपरिक संस्थागत सेवाएँ हर ज़रूरतमंद तक नहीं पहुँच पातीं, इसीलिए समुदाय आधारित पुनःस्थापन (CBR) एक वैकल्पिक और प्रभावशाली पद्धति के रूप में सामने आया है।

समुदाय आधारित पुनःस्थापन की परिभाषा:

CBR एक ऐसी रणनीति है जो विकलांग व्यक्तियों और उनके परिवारों को समुदाय के भीतर ही आवश्यक सेवाओं, प्रशिक्षण, शिक्षा, आजीविका, और सामाजिक अवसरों की सुविधा उपलब्ध कराने का कार्य करती है। यह समुदाय, सरकार और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग से विकलांग व्यक्तियों को आत्मनिर्भर, सशक्त और सामाजिक रूप से स्वीकार्य बनाने का प्रयास करती है।

उद्देश्य:

1.     विकलांगता के साथ जीने वाले लोगों की सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा देना।

2.     स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर पुनर्वास कार्य को सुलभ बनाना।

3.     परिवार और समुदाय की भागीदारी को सशक्त बनाना।

4.     विकलांग व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना।

प्रमुख घटक:

CBR कार्यक्रम पांच मुख्य क्षेत्रों पर केंद्रित होता है जिसे WHO के अनुसार "CBR मैट्रिक्स" कहा जाता है:

क्षेत्र

उद्देश्य

स्वास्थ्य (Health)

चिकित्सकीय सहायता, पुनर्वास, थेरेपी

शिक्षा (Education)

समावेशी शिक्षा, विशेष शिक्षा

आजीविका (Livelihood)

व्यावसायिक प्रशिक्षण, रोजगार

सामाजिक (Social)

सामाजिक स्वीकृति, भागीदारी

सशक्तिकरण (Empowerment)

निर्णय लेने की शक्ति, नेतृत्व विकास

 

समुदाय आधारित पुनःस्थापन की विशेषताएँ:

विशेषता

विवरण

स्थानीय भागीदारी

निर्णय प्रक्रिया में समुदाय की सक्रिय भूमिका

कम लागत

सीमित संसाधनों में सेवाओं का विस्तार

स्थायित्व

स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित कर स्थायी पुनर्वास सुनिश्चित

संवेदनशीलता

सांस्कृतिक और सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप कार्य

सुलभता

विकलांग व्यक्ति को घर-आसपास ही सेवाओं की उपलब्धता

 

समुदाय आधारित पुनःस्थापन की प्रक्रिया:

1.     समुदाय की पहचान और सर्वेक्षण

o    विकलांग व्यक्तियों की पहचान

o    समस्याओं और आवश्यकताओं का विश्लेषण

2.     योजना निर्माण

o    स्थानीय नेताओं, NGO, और परिवारों के साथ मिलकर योजना बनाना

o    प्राथमिकता अनुसार लक्ष्य निर्धारित करना

3.     कार्यान्वयन (Implementation)

o    स्वास्थ्य शिविर, शिक्षा सत्र, व्यावसायिक प्रशिक्षण

o    समर्थन समूह, माता-पिता की कार्यशालाएँ

4.     मूल्यांकन और पुनरीक्षण

o    समय-समय पर प्रभाव का मूल्यांकन

o    आवश्यकतानुसार सुधार करना

समुदाय आधारित पुनःस्थापन के लाभ:

लाभ

विवरण

सुलभ सेवाएँ

विकलांग व्यक्ति को अपने परिवेश में ही सेवा मिलती है।

सशक्तिकरण

परिवार और विकलांग व्यक्ति निर्णय प्रक्रिया में भाग लेते हैं।

स्वीकृति

समुदाय में सहभागिता बढ़ने से भेदभाव कम होता है।

दीर्घकालिक प्रभाव

स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देने से कार्यक्रम दीर्घकालिक हो जाता है।

 

चुनौतियाँ:

चुनौती

समाधान

संसाधनों की कमी

स्थानीय स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित करना

समुदाय की मानसिकता

जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रम

समन्वय का अभाव

NGO, स्वास्थ्य विभाग और शिक्षा विभाग का सहयोग

 

उदाहरण:

एक ग्रामीण क्षेत्र में CBR कार्यक्रम
ग्राम राजपुरा में 20 विकलांग बच्चों की पहचान की गई। गाँव के आंगनवाड़ी केंद्र और प्राथमिक विद्यालय में इन बच्चों के लिए विशेष कक्षाएं, फिजियोथेरेपी और परामर्श सत्र आयोजित किए गए। ग्राम पंचायत ने रोजगार मेलों में भागीदारी की और बच्चों के अभिभावकों को व्यवसायिक प्रशिक्षण दिया गया। इससे बच्चों की शिक्षा में रुचि और सामाजिक भागीदारी में सुधार आया।

निष्कर्ष:

समुदाय आधारित पुनःस्थापन विकलांग व्यक्तियों को केवल सहायता नहीं बल्कि स्वाभिमान और समानता के साथ जीने का अवसर देता है। यह पुनःस्थापन की ऐसी प्रणाली है जो "बाहर से सहायता" की बजाय "भीतर से सशक्तिकरण" की विचारधारा को बढ़ावा देती है। सरकार, NGO, समुदाय और परिवार मिलकर CBR को सफल बना सकते हैं और समाज को अधिक समावेशी बना सकते हैं।

Q5. किन्हीं तीन सिद्धातों का वर्णण करें जो मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों के साथ कार्य करते हुए प्रारंभिक देखभाल कायकर्ता को ध्यान में रखने चाहिए।

प्रस्तावना:

मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों की सीखने, समझने, संवाद करने, और सामाजिक परिस्थितियों से निपटने की क्षमता सामान्य बच्चों की अपेक्षा धीमी होती है। ऐसे बच्चों को विशेष सहयोग, संवेदनशीलता और उपयुक्त रणनीतियों की आवश्यकता होती है। इस स्थिति में एक प्रारंभिक देखभाल कार्यकर्ता की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।

इसी के लिए कुछ सिद्धांत निर्धारित किए गए हैं जो केवल कार्यकर्ता को मार्गदर्शन देते हैं बल्कि बच्चों के विकास में सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

1. व्यक्तिगत अंतर का सिद्धांत (Principle of Individual Differences)

विवरण:

हर बच्चा अपनी गति से सीखता है। मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों की क्षमताएं, सीमाएं, रुचियाँ और आवश्यकताएं एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। इस सिद्धांत के अनुसार, हर बच्चे के लिए एक समान रणनीति अपनाना उचित नहीं है।

क्रियान्वयन के तरीके:

रणनीति

विवरण

अवलोकन और मूल्यांकन

हर बच्चे की क्षमताओं और सीमाओं का मूल्यांकन कर योजना बनाना।

वैयक्तिक शिक्षण योजना (IEP)

बच्चे के लिए विशेष लक्ष्य निर्धारित करना और उसी के अनुसार गतिविधियाँ तय करना।

गति और स्तर अनुसार शिक्षण

धीमी गति से समझाना, बार-बार दोहराना।

लाभ:

  • बच्चा स्वयं को स्वीकार्य महसूस करता है।
  • तनाव और भय की स्थिति कम होती है।
  • धीरे-धीरे आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

2. सकारात्मक सुदृढ़ीकरण का सिद्धांत (Principle of Positive Reinforcement)

विवरण:

यह सिद्धांत कहता है कि जब बच्चों के सकारात्मक व्यवहार या प्रयासों को सराहा जाता है, तब वे उस व्यवहार को दोहराते हैं। मानसिक मंद बच्चों को बार-बार प्रेरणा और प्रशंसा की आवश्यकता होती है, ताकि वे आत्मविश्वास महसूस करें।

क्रियान्वयन के तरीके:

तकनीक

उदाहरण

मौखिक प्रशंसा

शाबाश रोहित! तुमने सही ब्लॉक लगाया।

पुरस्कार या टोकन

किसी गतिविधि के बाद स्माइली स्टिकर देना।

स्पर्श और मुस्कान

पीठ थपथपाना, मुस्कराना या हाथ मिलाना।

लाभ:

  • बच्चा प्रगति को पहचानता है और प्रयास करता है।
  • व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन आता है।
  • भावनात्मक संबंध मजबूत होता है।

3. संरचित और नियमित दिनचर्या का सिद्धांत (Principle of Structure and Routine)

विवरण:

मानसिक मंद बच्चों को अनिश्चितता से डर लगता है और वे बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाते। इस सिद्धांत के अनुसार, उन्हें ऐसी दिनचर्या दी जानी चाहिए जिसमें क्रमबद्धता, स्पष्टता और स्थायित्व हो।

क्रियान्वयन के तरीके:

रणनीति

विवरण

दिनचर्या चार्ट

भोजन, खेल, पढ़ाई, विश्राम आदि की तय दिनचर्या बनाएं।

विजुअल संकेत

तस्वीरों या प्रतीकों से समझाएं कि आगे क्या करना है।

सीमित परिवर्तन

अचानक बदलाव करें; यदि ज़रूरी हो तो पहले से बता दें।

लाभ:

  • बच्चा सुरक्षित महसूस करता है।
  • उसकी चिंता और व्यवहार संबंधी समस्याएँ कम होती हैं।
  • कार्य में सहभागिता बढ़ती है।

मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चों के लिए कार्यकर्ता की भूमिका:

  • सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना।
  • समूह गतिविधियों में भागीदारी सुनिश्चित करना।
  • संचार विधियों को सरल और चित्रात्मक बनाना।
  • परिवार से नियमित संवाद करना और उन्हें मार्गदर्शन देना।

निष्कर्ष:

मानसिक मंदता से ग्रस्त बच्चे समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उन्हें स्नेह, समझदारी, और उपयुक्त मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। व्यक्तिगत अंतर, सकारात्मक सुदृढ़ीकरण, और संरचित दिनचर्या जैसे सिद्धांत प्रारंभिक देखभाल कार्यकर्ता को सक्षम बनाते हैं कि वे इन बच्चों को एक समावेशी और सहायक वातावरण में विकसित कर सकें।

ये सिद्धांत केवल बच्चों के बौद्धिक और सामाजिक विकास में मदद करते हैं, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और आत्मसम्मान से भरपूर जीवन जीने में भी समर्थ बनाते हैं।

Q6. निम्नलिखित में से प्रत्येक को 500 शब्दों में स्पष्ट करेंः

) प्रभावी पर्यवेक्षक की तीन विशेषताएँ

) फ्रोबेल के शैक्षिक दर्शन की बुनियादी अवधरणाएँ

) मोबाइल क्रेश कार्यकम की दो अद्वितीय विशेषताएँ

() प्रभावी पर्यवेक्षक की तीन विशेषताएँ

1. नेतृत्व क्षमता (Leadership Quality):
एक प्रभावी पर्यवेक्षक में नेतृत्व की मजबूत क्षमता होनी चाहिए। वह अपनी टीम को मार्गदर्शन देने, प्रेरित करने और टीमवर्क को बढ़ावा देने में सक्षम होता है। एक अच्छे नेता की तरह पर्यवेक्षक को यह जानना होता है कि कार्य कैसे बाँटना है, और किसे कौन-सा कार्य सौंपा जाए ताकि कार्यक्षमता बढ़े।

उदाहरण: यदि एक ECCE केंद्र में कोई देखभालकर्ता अनुपस्थित है, तो पर्यवेक्षक तुरंत वैकल्पिक व्यवस्था करता है और कार्य को बाधित नहीं होने देता।

2. निरीक्षण और विश्लेषण की कुशलता (Observation & Evaluation Skills):
एक कुशल पर्यवेक्षक बच्चों, देखभालकर्ताओं और केंद्र के संसाधनों का सतत निरीक्षण करता है। वह देखता है कि गतिविधियाँ नियोजन के अनुसार हो रही हैं या नहीं। वह समस्याओं की पहचान कर उन्हें हल करता है।

उदाहरण: एक बालक समूह गतिविधियों में भाग नहीं ले रहा, तो पर्यवेक्षक देखता है कि कारण क्या हैभय, संकोच, या समझ की कमीऔर आवश्यक बदलाव करता है।

3. संप्रेषण और परामर्श देने की क्षमता (Communication and Mentoring):
पर्यवेक्षक को यह आना चाहिए कि वह अपनी बात प्रभावी ढंग से सभी स्तरों पर रख सकेचाहे वह देखभालकर्ता हों, अभिभावक हों या बच्चे। उसे फीडबैक देना और सुनना दोनों आना चाहिए। साथ ही वह टीम के सदस्यों को निरंतर सिखाता और प्रशिक्षित करता है।

उदाहरण: अगर कोई कार्यकर्ता नई है और खेल सामग्री के सही उपयोग को लेकर भ्रमित है, तो पर्यवेक्षक उसे शांति से सिखाता है।

निष्कर्ष:
इन तीन विशेषताओंनेतृत्व, निरीक्षण तथा संप्रेषणसे एक पर्यवेक्षक केवल संचालन में पारंगत होता है बल्कि बाल केंद्र की गुणवत्ता में भी निरंतर सुधार लाता है।

() फ्रोबेल के शैक्षिक दर्शन की बुनियादी अवधारणाएँ

1. खेल के माध्यम से शिक्षा (Learning through Play):
फ्रेडरिक फ्रोबेल ने यह माना कि खेल बच्चों का स्वाभाविक कार्य है और उन्हें दुनिया समझने में मदद करता है। उन्होंनेगिफ्ट्सऔरऑक्यूपेशनजैसी शिक्षण सामग्री की अवधारणा दी जो बच्चों को वस्तुओं के माध्यम से अनुभवात्मक शिक्षा प्रदान करती है।

उदाहरण: फ्रोबेल के 'गिफ्ट 1' में रंगीन गेंदें होती हैं, जो बच्चे को रंग, गति और दिशा समझने में मदद करती हैं।

2. प्रकृति से जुड़ाव (Nature Connection):
फ्रोबेल का मानना था कि प्रकृति बच्चों की सबसे पहली और सबसे प्रभावी शिक्षिका होती है। उन्होंने शिक्षकों को सलाह दी कि वे बच्चों को बाहर प्रकृति में ले जाएँ, पेड़-पौधों से संवाद करवाएँ और मौसमी बदलावों को समझने दें।

उदाहरण: फ्रोबेल के अनुसार बीज बोने और अंकुरण देखने की गतिविधि से बच्चों में धैर्य, जीवन चक्र की समझ और पर्यावरण प्रेम विकसित होता है।

3. स्वाभाविक विकास (Natural Growth):
फ्रोबेल ने यह सिद्धांत दिया कि प्रत्येक बच्चा भीतर से विकासशील बीज की तरह होता है, जिसे उचित पोषण, अनुभव और मार्गदर्शन मिलना चाहिए।

शिक्षक की भूमिका:
फ्रोबेल शिक्षक को एक "सहायक मार्गदर्शक" मानते थे, कि आदेश देने वाला। शिक्षक का कार्य बच्चों के स्वाभाविक विकास की दिशा को समझना और उसमें सहायक वातावरण बनाना है।

निष्कर्ष:
फ्रोबेल की अवधारणाएँ आज भी पूर्व-प्राथमिक शिक्षा में प्रयोग होती हैं। उनका दर्शन बाल केंद्रित, प्रकृति के अनुकूल और अनुभव आधारित शिक्षण की नींव रखता है।

() मोबाइल क्रेच कार्यक्रम की दो अद्वितीय विशेषताएँ

1. प्रवासी मजदूरों के बच्चों को देखभाल (Childcare for Migrant Labourers):
मोबाइल क्रेच (Mobile Creches) एक अनूठा कार्यक्रम है जो उन बच्चों की देखभाल करता है जो निर्माण स्थलों या प्रवासी श्रमिकों के साथ अस्थायी क्षेत्रों में रहते हैं। इन बच्चों को स्कूल, आंगनवाड़ी या स्थायी बाल केंद्रों तक पहुँच नहीं होती।

मुख्य सेवाएँ:

  • पोषणयुक्त आहार
  • स्वास्थ्य सेवाएं
  • पूर्व-शाला शिक्षा
  • माता-पिता को परामर्श

उदाहरण: एक निर्माण स्थल पर मोबाइल क्रेच की वैन आती है और अस्थायी रूप से केंद्र बनाकर बच्चों को सुरक्षित माहौल, भोजन और खेल देती है।

2. ‘चलते-फिरतेकेंद्र की अवधारणा (Flexible and Location-Based Centers):
मोबाइल क्रेच की दूसरी विशेषता यह है कि यह स्थायी भवन में नहीं होता बल्कि जहाँ ज़रूरत वहाँ सेवा की भावना पर कार्य करता है। ये केंद्र कहीं भीनिर्माण स्थलों, ईंट भट्टों, झुग्गियों या भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में खोले जा सकते हैं।

विशेष लाभ:

  • सुविधा से वंचित बच्चों को पहुँच
  • अभिभावकों को बच्चों की चिंता से मुक्ति
  • समयबद्ध गतिविधियाँ और दिनचर्या

निष्कर्ष:
मोबाइल क्रेच कार्यक्रम शहरी गरीब, झुग्गी-बस्तियों और प्रवासी मज़दूरों के बच्चों के लिए एक वरदान है। यह केवल शिक्षा और पोषण उपलब्ध कराता है बल्कि बचपन को सुरक्षा और स्नेह का माहौल भी देता है।

अनुभाग (ख)

अभ्यास संख्या 2:

दो बच्चों की तुलना द्वारा विकास की विविधताओं का अवलोकन

अनुभाग (ग)

अभ्यास संख्या 7:

माता-पिता के लिए एक शिक्षा गतिविधि की योजना बनाना और आयोजित करना

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FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

We provide handwritten PDF and Hardcopy to our IGNOU and other university students. There are several types of handwritten assignment we provide all Over India. We are genuinely work in this field for so many time. You can get your assignment done - 8130208920

Important Note - You may be aware that you need to submit your assignments before you can appear for the Term End Exams. Please remember to keep a copy of your completed assignment, just in case the one you submitted is lost in transit.

Submission Date :

·        30 April 2025 (if enrolled in the July 2025 Session)

·       30th Sept, 2025 (if enrolled in the January 2025 session).

IGNOU Instructions for the DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक Assignments

FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

Before attempting the assignment, please read the following instructions carefully.

1. Read the detailed instructions about the assignment given in the Handbook and Programme Guide.

2. Write your enrolment number, name, full address and date on the top right corner of the first page of your response sheet(s).

3. Write the course title, assignment number and the name of the study centre you are attached to in the centre of the first page of your response sheet(s).

4Use only foolscap size paper for your response and tag all the pages carefully

5. Write the relevant question number with each answer.

6. You should write in your own handwriting.

GUIDELINES FOR IGNOU Assignments 2024-25

FREE IGNOU DECE-03 बच्चों के लिए सेवायें एवं संचालक SOLVED ASSIGNMENT Jan–Dec 2025

You will find it useful to keep the following points in mind:

1. Planning: Read the questions carefully. Go through the units on which they are based. Make some points regarding each question and then rearrange these in a logical order. And please write the answers in your own words. Do not reproduce passages from the units.

2. Organisation: Be a little more selective and analytic before drawing up a rough outline of your answer. In an essay-type question, give adequate attention to your introduction and conclusion. The introduction must offer your brief interpretation of the question and how you propose to develop it. The conclusion must summarise your response to the question. In the course of your answer, you may like to make references to other texts or critics as this will add some depth to your analysis.

3. Presentation: Once you are satisfied with your answers, you can write down the final version for submission, writing each answer neatly and underlining the points you wish to emphasize.

IGNOU Assignment Front Page

The top of the first page of your response sheet should look like this: Get IGNOU Assignment Front page through. And Attach on front page of your assignment. Students need to compulsory attach the front page in at the beginning of their handwritten assignment.

ENROLMENT NO: …………………………

NAME: …………………………………………

ADDRESS: ………………………………………

COURSE TITLE: ………………………………

ASSIGNMENT NO: …………………………

STUDY CENTRE: ……………………………

DATE: ……………………………………………

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