लोकतंत्र की न्यायोचितता ( औचित्य) का परीक्षण कीजिए

लोकतंत्र की न्यायोचितता ( औचित्य) का परीक्षण कीजिए

लोकतंत्र एक ऐसी राजनीतिक प्रणाली है जो नागरिकों को सरकार के निर्माण में सहयोग करने का माध्यम प्रदान करती है। इसमें नागरिकों को नेतृत्व की चयन में हिस्सा लेने का अधिकार होता है और सरकार को जनमत के साथ खाता-खेती रखना पड़ता है। लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा न्याय और न्यायिक प्रक्रिया है, जो सुनिश्चित करती है कि समाज के सभी अधिकारी और नागरिकों को समानता, न्याय, और स्वतंत्रता का अधिकार होता है।

लोकतंत्र की न्यायोचितता ( औचित्य) का परीक्षण कीजिए

लोकतंत्र और न्याय:

लोकतंत्र की न्यायोचितता ( औचित्य) का परीक्षण कीजिए-लोकतंत्र का सीधा संबंध न्याय से है, क्योंकि एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण समाज की अवधारिता में न्याय एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। न्याय व्यवस्था उस तंत्र को तैयार करती है जिसमें नागरिकों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का स्पष्ट ज्ञान होता है और जहां उन्हें इनका पालन करने का अधिकार होता है।

लोकतंत्र की न्यायोचितता का अर्थ:

लोकतंत्र की न्यायोचितता का मतलब है सुनिश्चित करना कि समाज में न्यायपूर्ण और अधिकृत तरीके से व्यवस्था हो। न्यायोचितता से मतलब यह है कि समाज में हर व्यक्ति को इसके अधिकारों और कर्तव्यों का समर्पण और समान रूप से विचार किया जाता है। 

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यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि कोई भी व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करे और नियामक प्रक्रिया के अनुसार न्याय मिले।

लोकतंत्र की न्यायोचितता की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:

स्वतंत्र न्यायप्रणाली: लोकतंत्र में न्यायप्रणाली स्वतंत्र होती है जिससे न्यायिक तंत्र सरकार के प्रभाव से बाहर रहता है। यह न्यायिक तंत्र को अधिकृत और निर्भीक बनाए रखने में मदद करता है।

न्यायिक स्वतंत्रता: लोकतंत्र में न्यायिक तंत्र को स्वतंत्रता मिलती है जिससे वह न्याय के मामलों में निर्भीक रूप से निर्णय कर सकता है। इससे राजनीतिक दबावों का कमी होती है और न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष बनती है।

खुला और सार्वजनिक न्यायिक प्रक्रिया: लोकतंत्र में न्यायिक प्रक्रिया सार्वजनिकता और पारदर्शिता की ओर प्रवृत्त होती है। न्यायिक निर्णयों के प्रसार के लिए विभिन्न स्तरों पर सुनवाई की जाती है और इसमें लोगों को सुनने और देखने का अधिकार होता है। यह सामाजिक न्याय और सुधार की प्रक्रिया को सुनिश्चित करने का साधन है जो समाज के सभी वर्गों को न्यायपूर्णता की भावना दिलाता है।

समानता का सिद्धांत: लोकतंत्र में न्यायिक प्रक्रिया में समानता का सिद्धांत प्रधान होता है। सभी नागरिकों को न्यायिक प्रक्रिया में समान रूप से भागीदारी का मौका मिलता है और उन्हें अपने मुद्दों को सुनने और प्रस्तुत करने का अधिकार होता है। यह सुनिश्चित करता है कि समाज में सभी को अपने अधिकारों का बहुल लाभ होता है।

न्यायिक तंत्र की स्वीकृति: लोकतंत्र में न्यायिक तंत्र की स्वीकृति सामाजिक समझ में न्यायपूर्णता की भावना को मजबूती देती है। जब लोग समझते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया व्यापक रूप से स्वीकृत है और इसमें अधिकारिक सुरक्षा है, तो उनमें सामाजिक समर्थन बढ़ता है।

न्यायिक प्रक्रिया में समस्याएं:

हालांकि लोकतंत्र का सिद्धांत श्रेष्ठ है, लेकिन न्यायिक प्रक्रिया में कई समस्याएं भी हैं जो इसे आचार्य करती हैं।

देरी और लंबी प्रक्रिया: न्यायिक प्रक्रिया में होने वाली देरी और लंबी प्रक्रिया ने लोगों की आस्था में कमी उत्पन्न की है। कई मामलों में न्याय के लिए लंबी और खर्चीली प्रक्रिया होने के कारण न्याय का हासिल करना कठिन होता है।

प्रवृत्तिवाद और दबाव: कई बार राजनीतिक दबाव और प्रवृत्तिवाद न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। यह न्यायिक निर्णयों को आपसी संघर्ष का केंद्र बना देता है और न्याय की प्राथमिकता को कमजोर करता है।

विभाजन और असमानता: कई बार न्यायिक प्रक्रिया में जातिवाद, लिंगानुष्ठान और आर्थिक असमानता की मुद्रा देखी जा सकती है। इससे न्यायिक प्रक्रिया में असमानता बढ़ सकती है और विभाजन उत्पन्न हो सकता है, जिससे समाज में भ्रांति और असंतुलन होता है।

अधिकृत और संविदानिक मर्जी: कई बार सरकार न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करती है और अपनी अधिकृत मर्जी का इस्तेमाल करती है। यह न्यायिक तंत्र की आत्मनिर्भरता को कमजोर कर सकता है और न्यायिक प्रक्रिया को राजनीतिक दबावों के प्रति संविदानिक बना सकता है।

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ग्रामीण और दुर्बल स्थानों में अभाव: न्यायिक प्रक्रिया ग्रामीण और दुर्बल क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकती है, क्योंकि यहां न्यायिक संरचना कमजोर होती है और वहां अधिकारिक दबाव भी होता है।

न्यायिक सुधार:

तेज और सुविधाजनक प्रक्रिया: न्यायिक प्रक्रिया को तेज और सुविधाजनक बनाए रखने के लिए सुधार की आवश्यकता है। इसमें तकनीकी उन्नति, विचार-मंथन, और समर्थ न्यायिक संरचना को मजबूती देने के लिए नए और अद्यतित सुधारों की जरूरत है।

अधिकारिक दबाव से मुक्ति: सरकारी हस्तक्षेपों से बचने के लिए न्यायिक संरचना को स्वतंत्रता और अधिकारिक सुरक्षा से सुसज्जित किया जाना चाहिए। न्यायिक संरचना को समर्थन के लिए आत्मनिर्भरता प्रदान करने के लिए सुधार किए जाने चाहिए।

सामाजिक और आर्थिक समानता: न्यायिक प्रक्रिया में सामाजिक और आर्थिक समानता को बढ़ावा देना चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि समाज के सभी वर्गों को न्यायिक सुरक्षा का बराबर मिलता है और कोई भी व्यक्ति अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं कर सकता।

समाज सहयोग और सहयोग: न्यायिक प्रक्रिया को समाज के सहयोग और सहयोग के साथ चलाया जाना चाहिए। समाज के सभी अंगों को न्यायिक प्रक्रिया में भागीदारी और सहयोग का अधिकार होना चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रिया में विशेषाधिकार हो।

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शिक्षा और सच्चाई का प्रचार-प्रसार: न्यायिक सुधार के लिए जनता को शिक्षित और सच्चाई के साथ जागरूक किया जाना चाहिए। लोगों को न्यायिक प्रक्रिया में उनके अधिकारों की जागरूकता होनी चाहिए ताकि वे अपने अधिकारों का निर्धारण करने के लिए सक्षम हों। समाज को न्यायिक सुधारों के महत्व को समझाने और समर्थन करने के लिए सही जानकारी पहुँचाने के लिए माध्यमों का भी सही तरीके से उपयोग किया जाना चाहिए।

समापन:

लोकतंत्र की न्यायोचितता एक महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा है जो समाज में न्याय और समानता को सुनिश्चित करता है। न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से ही समाज में धरोहर की स्थापना होती है और लोगों को विश्वास मिलता है कि वे अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर सकते हैं।

लोकतंत्र की न्यायोचितता ( औचित्य) का परीक्षण कीजिए-हालांकि, इस प्रक्रिया में कई समस्याएं हैं जिन्हें सुधारने की आवश्यकता है, लेकिन सही दिशा में कदम बढ़ाने से ही एक सशक्त और समृद्धि शील लोकतंत्र का संजीवनी मिल सकता है।

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