निर्भरता सिद्धान्त - Dependency Theory की विवेचना कीजिए।
निर्भरता सिद्धान्त ‘विकास के निरन्तरता सिद्धान्त’ (Dependency Theory) तथा ‘प्रसारण सिद्धान्त’ (Diffusion Theory) जिन्हें विकसित देशों का समर्थन प्राप्त है तथा जो विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को दी जाने वाली विदेशी सहायता और निवेश की नीतियों की सराहना करते हैं निर्भरता का सिद्धान्त - Dependency Theory को अस्वीकार करते हैं ।
“निर्भरता सिद्धान्त यूरो-केन्द्रीय झुकाव तथा साम्राज्यवाद एवं आधुनिकीकरण के प्रतिमानों को अस्वीकार करने के साथ-साथ तृतीय विश्व के देशों में विद्यमान निम्नस्तर के विकास की प्रक्रिया का विश्लेषण करके राजनीति के अध्ययन के लिए यह वैकल्पिक उपागम प्रस्तुत करता है ।”
विकसित पश्चिम देश इस विश्व व्यवस्था के केंद्र का निर्माण करते हैं। औपनिवेशिक काल में साम्राज्यवादी देशों ने तीसरी दुनिया को अपनी जरूरतों के अनुरूप ढालने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इस प्रक्रिया में तीसरी दुनिया की अर्थव्यवस्था संरचनात्मक हूप से विकसित देशों की अर्थव्यवस्था से जुड़ गयी है और यही कारण है कि विकसित देशों पर उसकी निर्भरता आज भी बनी हुई है। निर्भरता का सिद्धान्त - Dependency Theory विश्व पूंजीवाद से तीसरी दुनिया की हैसियत केंद्र से जुड़े अनुलग्नक जैसी है। केंद्र को महनगर/राजधानी भी कहते हैं। तीसरी दुनिया विश्व पूंजीवाद की परिधि पर स्थित है। इसे दृष्टिकोण के अनुसार तीसरी दुनिया का राज्य केंद्र/राजधानी के हाथ का औजार भर है।
निर्भरता सिद्धान्त निम्न स्तर के विकसित देशों के आन्तरिक परिवर्तनों का विश्लेषण करने वाला ऐसा उपागम है जो उनके निम्नस्तरीय विकास की विश्व आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्य में व्याख्या करता है ।
निर्भरता का सिद्धान्त - Dependency Theory प्रारम्भिक स्तर पर यह किसी अल्पविकसित देश की सामाजिक-अर्थिक-राजनीतिक संरचनाओं पर औपनिवेशिक प्रभावों का विश्लेषण करता है और फिर उनकी उभरती हुई नई सामाजिक-आर्थिक संरचनाओं का अध्ययन प्रस्तुत करता है । अन्तिम चरण में यह विश्व पूंजीवादी व्यवस्था में इनके विकास का अध्ययन आन्तरिक परिवर्तनों तथा बाह्य परिवेश की अन्त क्रिया के परिप्रेक्ष्य में करता है ।
निर्भरता का सिद्धान्त - Dependency Theory निर्भरता सिद्धान्त के समर्थक तीसरे विश्व के निर्धन और आर्थिक रूप से निर्भर देशों के विकास की निम्नस्तरीय स्थिति का अध्ययन उस सामाजिक-आर्थिक एवं राजनीतिक प्रक्रिया के सन्दर्भ में करते हैं जो कि इन देशों को विकसित एव समृद्ध देशों के साथ जोड़ती है ।
निर्भरता सिद्धान्त: विकास का इतिहास
लैटिन अमरीकी आर्थिक आयोग (ECLA) के प्रतिवेदन से निर्भरता सिद्धान्त के आधार पर स्पष्टीकरण होता है । इस आयोग की नियुक्ति लैटिन अमरीकी देशों के निम्नस्तर के विकास का विश्लेषण करने तथा सम्भावित समाधान सुझाने के लिए की गई थी ।
इसी आधार पर फुलाद तथा सकल जैसे विद्वानों ने तर्क दिया कि स्थानीय देशों में आधुनिक पूंजीवादी संस्थाओं के आगमन ने ही लैटिन अमरीका व दूसरे निम्नस्तरीय विकसित राज्यों में विकास का निम्नस्तर रहा । विकसित तथा अल्पविकसित देशों के बीच सम्बन्धों की प्रकृति तथा क्षेत्र ने ही अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार प्रणाली में एक ऐसा अस्वस्थ श्रम-विभाजन पैदा किया जिसमें अल्पविकसित राज्य निर्यात के लिए कच्चे माल के उत्पादक बन कर रह गए । इससे विकसित देशों को भारी आर्थिक लाभ हुआ ।
अल्पविकसित देशों की अर्थव्यवस्थाएं विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर निर्भर हो गईं । विदेशी सहायता के प्रवाह ने अल्पविकसित देशों की निर्भरता को और भी गहरा कर दिया । विकसित देशों द्वारा अपनाई गई संरक्षित व्यापार एवं आर्थिक नीतियों के प्रादुर्भाव ने बहुराष्ट्रीय निगमों, गैर एवं विश्व व्यापार संगठन के विकसित राष्ट्रों की तरफ झुकाव, अंकटाड की असफलता, आदि ने परिधियों की केन्द्र पर निर्भरता को पुख्ता किया ।
निर्भरता सिद्धान्त: फ्रैंक तथा वालस्टेंन के उपागम (Dependency Theory: Approaches of Frank and Wallerstein):
निर्भरता का सिद्धान्त - निर्भरता सिद्धान्त के समर्थकों में एंड्रे गुंडर फ्रैंक, वालर्स्टेन, डॉस सांतोस, सन्कल, फुर्तादो, स्टावनहेगन, यूजो फालेटो तथा फ़्रांज फैनन के नाम उल्लेखनीय हैं । सभी विचारक इस बिन्दु पर सहमत हैं कि तृतीय विश्व के देशों के निम्नस्तरीय विकास का कारण इनका उभरता हुआ नवउपनिवेशीय स्वरूप तथा इनकी विकसित देशों पर निर्भरता है ।
उसके अनुसार अल्पविकसित राज्यों तथा विकसित केन्द्रों के आपसी सम्बन्ध निम्नस्तर के विकास के लिए उत्तरदायी हैं । लैटिन अमरीकी राज्यों का उदाहरण देते हुए उसने कहा कि विश्व व्यवस्था में कतिपय समृद्ध देश परिधि राज्यों की एक बड़ी संख्या के विकास को अवरुद्ध कर रहे थे ।
निर्भरता सिद्धान्त का मूल्यांकन (Evaluation of Dependency Theory):
निर्भरता का सिद्धान्त - Dependency Theory अधिकांश निर्भरता सिद्धान्तकारों ने विकसित तथा अल्पविकसित देशों के सम्बन्धों के रूप का विश्लेषण करने के लिए केन्द्र परिधि मॉडल का प्रयोग किया है । उनके अनुसार विश्व पूंजीवादी व्यवस्था के बने रहने तक निम्नस्तरीय देशों के विकास का कोई विकल्प नहीं हो सकता ।
यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि, राष्ट्र-राज्य व्यवस्था अब न केवल अपर्याप्त सिद्ध हो रही है अपितु मानवता की आवश्यकताओं को पूरा करने की स्थिति में भी नहीं है अत: अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में विवादों, तनावों झगड़ों एवं युद्धों को समाप्त करने के लिए विश्व समुदाय के लोगों के सामाजिक-आर्थिक कल्याण पर ध्यान केन्द्रित किया जाना अधिक समीचीन एवं लाभकारी है ।
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